नए सत्र में सरकारी कॉलेज में एडमिशन नहीं ले सकते निजी कॉलेज के स्टूडेंट्स

नए सत्र में सरकारी कॉलेज में एडमिशन नहीं ले सकते निजी कॉलेज के स्टूडेंट्स

Anita Peddulwar
Update: 2019-07-18 06:56 GMT
नए सत्र में सरकारी कॉलेज में एडमिशन नहीं ले सकते निजी कॉलेज के स्टूडेंट्स

डिजिटल डेस्क, नागपुर। निजी कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद विद्यार्थी अगले सत्र में सरकारी कॉलेज में प्रवेश नहीं ले सकते। इसके उलट सरकारी कॉलेज के विद्यार्थी चाहें तो अगले सत्र में निजी कॉलेज में एडमिशन ले सकते हैं। राज्य सरकार के इस हालिया फैसले के खिलाफ वंदना महिले ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता के अनुसार, सरकारी कॉलेजों के विद्यार्थियों की संख्या में कमी हो और निजी कॉलेजों को फायदा मिले, इसलिए सरकार ने यह निर्णय लिया है। मामले में याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर हाईकोर्ट ने प्रतिवादी राज्य उच्च शिक्षा संचालक और  नागपुर यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। 

यह है मामला

दरअसल, याचिकाकर्ता ने वर्ष 2018-19 में तीन वर्षीय एलएलबी पाठ्यक्रम में वंजारी लॉ कॉलेज में एडमिशन लिया। प्रथम वर्ष पूरा करने पर उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी के डॉ.बाबासाहब आंबेडकर लॉ कॉलेज की शहर शाखा में एडमिशन के लिए आवेदन किया, लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें राज्य सरकार के 24 सितंबर 2018 के जीआर का हवाला दिया। बताया कि निजी कॉलेज के विद्यार्थी ऐसे सरकारी कॉलेज में प्रवेश नहीं ले सकते। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली है। याचिकाकर्ता के अनुसार, सरकारी कॉलेज की फीस निजी कॉलेज की तुलना में कम होती है। यदि सरकारी कॉलेज में सीट खाली हैं, तो निजी कॉलेज के विद्यार्थियों को उस पर प्रवेश देने में क्या हर्ज है? सरकार का यह कदम निजी कॉलेजों से विद्यार्थियों का पलायन रोकने और उन्हें आर्थिक फायदा पहुंचाने वाला है। याचिकाकर्ता की ओर से एड.एम.डी.रामटेके ने पक्ष रखा। 

रामटेक गढ़मंदिर पर मिला एक माह का समय

रामटेक गढ़मंदिर में प्रस्तावित 75 लाख रुपए के सुधारकार्य के लिए निधि जारी करने पर आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को एक माह के भीतर निर्णय लेने के आदेश नागपुर खंडपीठ ने जारी किए। न्यायालयीन मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद जयस्वाल ने कोर्ट को बताया कि सेंट्रल बोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पीडब्ल्यूडी विभाग को गढ़मंदिर के सुधार के लिए कुछ सिफारिशें की थी। इस आधार पर पीडब्ल्यूडी ने कार्य का प्रारूप तय किया है, लेकिन इसमें करीब 75 लाख रुपए का खर्च है। प्रस्ताव पर मंजूरी मिलना अभी बाकी है। इसके बाद हाईकोर्ट ने यह आदेश जारी किए हैं। बीती सुनवाई में न्यायालयीन मित्र ने कोर्ट में सीआईआरएस की  रिपोर्ट का हवाला देते हुए मंदिर के निर्माणकार्य को हुई क्षति का खुलासा किया था। पीडब्ल्यूडी ने मंदिर काम यहां अधूरे छोड़ दिए हैं। चट्टान के निरीक्षण में यह भी देखने मिल रहा है कि उसके कई हिस्सों को सीधा नहीं किया गया है। इस कारण चट्टान का एक हिस्सा किसी भी वक्त टूट कर बिखर सकता है। वहीं मंदिर परिसर में अनधिकृत निर्माण कार्य से मंदिर की सुंदरता भी खंडित हाे रही है। क्षेत्र में दुकानदारों ने भी अतिक्रमण कर रखा है, जिसे हटाना जरूरी है। मामला कोर्ट के विचाराधीन है। 

यह है मामला

रामटेक गढ़मंदिर विदर्भ के प्रसिद्ध दार्शनिक स्थलों में से एक है। पौराणिक महत्व का राममंदिर, अगस्त्य ऋषि का आश्रम, कालिदास स्मारक जैसे कई आकर्षण हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं को यहां खींच लाते हैं। मगर बीते कुछ वर्षों से इस परिसर की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। पहाड़ी पर अवैध खनन बढ़ गया था। दार्शनिक स्थल जर्जर होते जा रहे थे। प्रशासनिक लापरवाही का शिकार यह स्थल अपना अस्तित्व खोने की कगार पर था। यह मामला स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित होने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने स्वयं इसका संज्ञान लिया था। कोर्ट ने इस मामले में स्वयं जनहित याचिका दायर की थी। 

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