मनोरोगियों को उपचार के साथ दिया जा रहा आत्म निर्भरता का प्रशिक्षण

मनोरोगियों को उपचार के साथ दिया जा रहा आत्म निर्भरता का प्रशिक्षण

Anita Peddulwar
Update: 2019-10-05 10:07 GMT
मनोरोगियों को उपचार के साथ दिया जा रहा आत्म निर्भरता का प्रशिक्षण

डिजिटल डेस्क, नागपुर । मानसिक विकार किसी को भी हो सकता है लेकिन समाज में किसी व्यक्ति के बारे में ऐसा होने पर उसकी परेशानी को न समझ उल्टा उसे दिमागी संतुलन बिगड़ने का लेबल लगा दिया जाता है। ऐसे समय में यदि उचित उपचार और अच्छाा माहौल मिले, तो मरीज स्वस्थ्य होकर समाज का हिस्सा बन सकता है। इसी कड़ी में प्रादेशिक मनोरुग्णालय व टाटा ट्रस्ट साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उपचार के साथ ही आत्म निर्भरता का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वह खुद के पैरों पर खड़ा हो समाज का हिस्सा बन सके। 

पुनर्वसन वार्ड में रखकर आत्म निर्भरता का प्रशिक्षण
प्रादेशिक मनोरुग्णालय में हाल ही में पुनर्वसन वार्ड (रिफार्म वॉर्ड) बनाया गया है। इस वार्ड में 10 मरीजों को रखा गया है। इन मरीजों को उपचार के बाद उनमें हो रहे सुधार के आधार पर अलग किया गया है। ऐसे मरीजों अस्पताल की ड्रेस नहीं, बल्कि सामान्य कपड़े पहनते हैं। वे सुबह जागने के बाद नित्य क्रिया से निवृत्त होकर आपस में मिलकर अपने कमरे की सफाई करते है। अपने कपड़े खुद धोते हैं और खुद खाना लेने के लिए जाते है। यह सब उनको आत्म निर्भर बनाने के लिए किया जा रहा है।

सबको परोसते हैं नाश्ता
मनोरुग्णालय में  टाटा ट्रस्ट के सहयोग से एक ट्रक में रेस्टोरेंट चलता है जो वहां आने वाले डॉक्टर, स्टॉफ, मरीज और उनके परिजनों को चाय-नाश्ता उपलब्ध करवाता है। यहां चाय नाश्ता बनाने के अलावा नोन-स्किल काम अस्पताल में उपचाररत मरीज करते है। इन मरीजों को उनमें हो रहे सकारात्मक सुधार के बाद चुना जाता है। ग्राहकों से ऑर्डर लेने से लेकर उनको नाश्ता परोसने तथा सफाई का काम करते है। यह काम उनके प्रशिक्षण के साथ ही आय का जरिया भी बन गया है। यदि लगातार अच्छा प्रदर्शन रहा, तो टाटा ट्रस्ट इनके लिए किराए पर घर लेकर देख-रेख में किसी निजी संस्थान में नोन-स्किल काम के लिए प्रेरित करेगी, जिससे वह समाज का हिस्सा बन सकें।  

ऐसी है इनकी कहानी
नरेश कुमार (परिवर्तित नाम) खुद को गोरखपुर का बताता है। हालांकि पुलिस के माध्यम से की गई जांच में उसके परिजन वहां नहीं मिले। 2015 में उसे मनोरुग्णालय में लाया गया था तब वह बहुत काम बोलता था। अब उपचार के बाद वह सवालों का जवाब देता है और बताया गया काम करता है। ऐसी ही स्थिति दिनेश कुमार (परिवर्तित नाम) की है। उसे 2017 में चंद्रपुर से लाया गया था। अभी जो भी काम बोलो] वह काम करता है। विवेक कुमार (परिवर्तित नाम) की भी यही कहानी है। उसे 2011 में यहां लाया गया था। उसमें काफी सुधार है और वह बाहर निकलकर काम करना चाहता है।  स्टॉफ से पूछता भी है कि मुझे बाहर जाना है, कौन ले जाएगा? यह तीनों रेस्टोरेंट में काम करते है।

ठीक होने वाले मरीजों के लिए रिफार्म वार्ड बनाया

रिफार्म वार्ड बनाया है, जिसमें ठीक होने वाले मरीजों को रखते है। नान-स्किल काम उनको सिखाया जा रहा है, जिससे वह अपने परिवार में लौटें, तो उन पर बोझ न बनें। वह खुद ही अपना सारा काम करते है। चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता और स्टॉफ सभी का उन पर ध्यान रहता है और वह उन्हें प्रेरित करते है। इस काम के बदले में मानदेय के रूप में उनके खाते में भुगतान किया जाएगा।  -डॉ.माधुरी थोरात, अधीक्षक, प्रादेशिक मनोरुग्णालय

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