जिले की सबसे पुरानी सिंहपुर नहर हुई जर्जर, नहीं हो पाती सिंचाई  - सैकड़ों किसान परेशान

जिले की सबसे पुरानी सिंहपुर नहर हुई जर्जर, नहीं हो पाती सिंचाई  - सैकड़ों किसान परेशान

Bhaskar Hindi
Update: 2020-11-18 10:24 GMT
जिले की सबसे पुरानी सिंहपुर नहर हुई जर्जर, नहीं हो पाती सिंचाई  - सैकड़ों किसान परेशान

डिजिटल डेस्क शहडोल । जिले की सबसे पुरानी और लंबी सिंहपुर नहर के संंबंध में दिया तले अंधेरा वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। नहर होने के बावजूद सैकड़ों किसान रबी सीजन की फसलें नहीं ले पाते और खेत सूखे पड़े रह जाते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि दशकों पुरानी नहर के रखरखाव व मरम्मत के लिए सिंचाई विभाग द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। नहर में पानी नहीं आने के कारण जहां पहले फसलें लहलहाती थीं, अब बंजर छोडऩे पर किसानों को मजबूर होना पड़ रहा है। सरफा नदी पर बांध बनाकर सिंहपुर के नाम से नहर का निर्माण सन् 1972 में कराया गया था। नहर के रखरखाव सहित पानी की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण जिले की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना सिंहपुर नहर दम तोड़ रही है।
1700 हेक्टेयर में होती है सिंचाई
करीब 16 किलोमीटर लंबी सिंहपुर नहर से सिंहपुर, पड़रिया, नरगी, उधिया, कंचनपुर तथा रायपुर सहित आधा दर्जन गावों की 1700 हेक्टेयर क्षेत्रफल के खेतों में पानी उलब्ध होता है। लेकिन सिंचाई विभाग और प्रशासन की उपेक्षा के चलते वर्तमान में इस नहर की हालत अत्यंत जर्जर हो चुकी है। ग्रामीणों ने अनेकों बार सिंचाई विभाग व जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया लेकिन जर्जर नहर की सुधार की दिशा में किसी ने ध्यान नहीं दिया। जल उपभोक्ता समितियों के माध्यम से कुछ साल तक 50 से 70 हजार की राशि खर्च कराई जाती रही, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुई। कुल मिलाकर प्रशासनिक उपेक्षा के कारण नहर का अस्तित्व मिटता जा रहा है और किसान खेती करना छोड़ते जा रहे हैं।
नहर व बांध की स्थिति खराब
पानी की सुविधा नहीं मिलने का कारण बांध व नहर की हालत खराब होना भी है। 90 के दशक में सिंचाई विभाग द्वारा पूरी नहर को सीमेंटेड कराकर पक्की बनाने का कार्य शुरु कराया गया था। कुछ किलोमीटर पक्का निर्माण में लाखों रुपये खर्च किए गए। लेकिन पूरी नहर पक्की नहीं हो सकी। नतीजा यह है कि नहर में पानी खोलते ही नहर की मेढ़ टूटने लगती है। अनगिनत स्थानों से नहर टूट चुकी है। बरसात के दिनों में नहर में पानी भरते ही पानी नये स्थान से रास्ता बना लेती है। बांध की हालत भी जर्जर हो चुकी है। पानी का ठहराव नहीं हो पाता। 
घोषणा पर अमल नहीं
जल उपभोक्ता संस्था का कहना है कि पानी स्टोर करने का एक मात्र तरीका बांध की सफाई अथवा नया बांध निर्माण ही हो सकता है। जल उपभोक्ता समिति तथा ग्रामीणों की ओर से मुख्यमंत्री उस समय ज्ञापन दिया गया था जब लोक सभा चुनाव होने वाले थे। सीएम ने एक वर्ष में नहर के जीर्णोद्धार हो जाने का भरोसा दिलाते हुए विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया था, लेकिन वह घोषणा आज तक पूरी नहीं हुई। बताया गया है कि सिंचाई विभाग द्वारा कई साल पहले तक नहर की मरम्मत के लिए लाखों रुपये खर्च किए गए लेकिन जमीनी स्तर पर कार्य कुछ भी नहीं हुआ।
हम किसानों का क्या दोष
ग्रामीण किसानों का कहना है कि शहर में पानी की कमी को दूर करने के लिए अन्य वैकल्पिक व्यवस्था करने की बजाय हमारा हक क्यों छीना जा रहा है। किसान रामसुफल यादव, जनार्दन शुक्ला, कुबेर शुक्ला, अशोक श्रीवास्तव, राजेंद्र सिंह, लालमन श्रीवास्तव, बंसू यादव, रामदास यादव, लुद्धू बैगा आदि ने बताया कि खेत और नहर होने के बाद भी कई सालों से गेहूं, चना की फसल नहीं बो पा रहे हैं। नहर में पानी कम आता है। खरीफ फसलों का उत्पादन भी ठीक से नहीं हो पाता। किसानों की मांग है कि हमें अपने हक का पानी चाहिए, नहीं तो आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा। 
इनका कहना है
सिंचाई विभाग के अधिकारियों को भेज कर मौका निरीक्षण कराया जाएगा। किसानों के हित में जो भी आवश्यक होगा, कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. सतेन्द्र सिंह, कलेक्टर शहडोल

 

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