गर्भवती पत्नी और मासूम बेटी को हाथ गाड़ी पर हैदराबाद से लाया था बालाघाट - अभी भी रोटी को मोहताज

गर्भवती पत्नी और मासूम बेटी को हाथ गाड़ी पर हैदराबाद से लाया था बालाघाट - अभी भी रोटी को मोहताज

Bhaskar Hindi
Update: 2020-06-01 13:32 GMT
गर्भवती पत्नी और मासूम बेटी को हाथ गाड़ी पर हैदराबाद से लाया था बालाघाट - अभी भी रोटी को मोहताज

 डिजिटल डेस्क बालाघाट । माह की शुरूआत में देश भर में एक तस्वीर चर्चा में आयी थी। तस्वीर थी एक ऐसे मजदूर की जिसने हैदराबाद में लॉकडाउन के चलते अपनी रोजी रोटी छिन जाने के बाद, वहां से पैदल अपने घर के लिये चलना तय किया था। साधन बनाया था एक हाथ से खींचने वाली गाड़ी को, जिसमें बैठा कर वह अपनी गर्भवती पत्नि और 2 साल की मासूम बेटी को लेकर चल पड़ा था। इस उम्मीद के साथ की यहां भूखे मरने से अच्छा है कि वह घर पहुंच जाये, जहां अपने गांव अपनो के बीच उसकी तकलीफ कम हो जाएगी। लेकिन घर लौट कर भी यह श्रमिक रोजी रोटी को मोहताज है। कमोबेश हर मजदूर की स्थिति ऐसी ही है जिन्हे आते ही क्वारेंटाईन होने के कारण पहले 14 दिन कोई काम नही दिया जा सकता और उसके बाद नये काम की तलाश भी वर्तमान परिस्थितयों मे आसान नही।
काम नही था हैदराबाद गया, पहूंचते ही दो दिन में लॉकडाउन हो गया यह कहानी नही सच्चाई है एक ऐसे हिम्मती युवा श्रमिक रामू घोरमारे और उसकी गर्भवती पत्नि धनवंता बाई की जो की होली के ठीक बाद कमाने के लिये अपने गांव कुंडे मोहगांव से हैदराबाद पहुंचा था। जहां एक कंस्ट्रक्शन साईट पर मिस्त्री का काम करता था। 19 मार्च को वहां उसे काम भी मिला। लेकिन दो तीन दिन में ही लॉकडाउन हो गया। 15 दिन तो जैसे तैसे वहां के मददगारों के भरोसे रोजी रोटी का जुगाड़ हो गया। फिर उसने हिम्मत जुटाई और दो सौ रूपये में 4 सायकल के बेरिंग लेकर लकड़ी और लोहे की गाड़ी बनाकर हाथ गाड़ी खींचता हुआ लगभग डेढ़ सौ कि.मी. पहले पांच दिन में पैदल और फिर कोई 200 कि.मी. एक ट्रक पर बैठ कर नागपुर के हाईवे तक पहुंचा। वहां से फिर गाड़ी पर जिंदगी खींचता हुआ वह रजेगांव के रास्ते अपने गांव पहुंचा था।गांव लौटते ही 3 दिन क्वारेंटाईन सेंटर में मिला खाना, फिर पंचायत ने दी थी 15 किलो राशन की मदद
रामू घोरमारे से हमारी टीम ने आज जब उसके गांव जाकर चर्चा की तो उसने बताया कि जब गांव लौटा तो पहले दिन नातेदारों ने खाना खिलाया, दूसरे दिन आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने संपर्क कर उसे एक क्वारेंटाईन सेंटर भेज दिया। जहां उसे तीन दिनो तक खाना मिला। स्वास्थ्य की जांच हुई और फिर उसके बाद उसे घर पर ही 14 दिन तक रहने का बोल कर गांव भेज दिया गया। जहां पंचायत के सचिव ने उसे अपने पास से 100 रूपये और 15 किलो राशन दिया। लेकिन आज जब हम इस परिवार के पास पहुंचे तो उसके घर में चूल्हा जलाने के लिये राशन तक नही था। सरकारी मदद पेट की आग बुझाते समाप्त हो गई थी और हाथ में कोई काम भी नही था। 
इनका कहना है...
प्रवासी श्रमिको को पंचायतो के माध्यम से राशन और मनरेगा से काम दिया जा रहा है। पहले इस श्रमिक को एक बार राशन दिया है अगर समाप्त हो गया है तो दोबारा दे दिया जायेगा।
निकिता मंडलोई, एस.डी.एम. किरनापुर
 

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