करेली के बिनैकीटोला गांव के पास शक्कर नदी के तट पर पाए गए हजारों साल पुराने शैलचित्र

करेली के बिनैकीटोला गांव के पास शक्कर नदी के तट पर पाए गए हजारों साल पुराने शैलचित्र

Bhaskar Hindi
Update: 2021-03-01 08:42 GMT
करेली के बिनैकीटोला गांव के पास शक्कर नदी के तट पर पाए गए हजारों साल पुराने शैलचित्र

डिजिटल डेस्क  करेली । नरसिंहपुर जिले की तहसील करेली के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत नयाखेड़ा के गांव बिनैकीटोला में शक्कर नदी किनारे बने शैलचित्रों की सुध साल भर में जिम्मेदार प्रशासन और विभाग ने तो नहीं ली, लेकिन इस बीच दैनिक भास्कर की खबर को संज्ञान में लेकर उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय कि पुरातत्व विभाग शोध टीम ने जरूर स्थल निरीक्षण किया है। जिसके बाद आने वाले दिनों में बिनैकी गांव में गुफाओ के अंदर दीवारो पर उकेरे गयी प्राचीन सभ्यता के शैलचित्रों को विश्वपटल पर अंकित होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
विश्व विद्यालय की टीम ने किया शोध
विक्रम विश्वविद्यालय की शोध टीम द्वारा स्थल निरीक्षण उपरांत सभी शैल चित्रों की नंबरिंग करते हुए फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करके मौके से कुछ प्राचीन टूल भी एकत्रित किए गए हैं ज्ञात हो कि यहां पर महिला पुरुषों के पहनावे, युद्ध कला, परिवार भरण पोषण, नृत्य, उत्सव के अलावा जंगली जानवरों सहित पालतू जानवरों के भी चित्र उकरेे गये हैं। जिसमें शेर, हिरण, बारहसिंघा, कुत्ते, बिल्ली, बोविड और कुछ पक्षियों के शैल चित्र भी उकेरे गए हैं।
4  नये शैलाश्रय भी खोजे
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की शोध टीम ने पहले से खोजे गये 3 शैलाश्रय के अलावा स्थल निरीक्षण के दौरान 4 नये शैलाश्रय खोजे हैं। जिनमें भी अलग.अलग काल, समय के चित्र मौजूद है। अब इनकी रिजिस्टर्ड संख्या फिलहाल 7 हो गई है जो आने वाले दिनों में बढ़ भी सकती है। यहाँ पर मौजूद चित्रो के अवलोकन से ज्ञात हुआ है कि ये चित्र सुपर इम्पोजिशन के है यहाँ लगातार ही मानव रहते आये है ज्यादातर शैल चित्र ऐतिहासिक काल के है जो दो से ढ़ाई हजार साल पहले के हो सकते है।
रंग आ रही भास्कर की पहल
इस संबंध में दैनिक भास्कर लगातार संबंधित विभाग और प्रशासन का ध्यान आकर्षण करा रहा है मौके पर पहुंचे विश्वविद्यालय के व्याख्याता और शोध कर्ताओं ने बताया कि भास्कर की खबर को संज्ञान में लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के फंड की मदद से सभी शैलाश्रय का विस्तृत अध्ययन किया गया है जिसकी रिपोर्ट और शोध पत्र प्रकाशित होने के बाद इस जगह का पुरातत्व संरक्षण संभव हो सकता है।
शोध कार्य से जागी उम्मीद
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के 4 सदस्य टीम में व्याख्याता डॉ रितेश लोट, व्याख्याता डॉ हेमंत लोदवाल, सुधीर मरकाम शोधकर्ता पीएचडी, शुभम केवलिया जूनियर फेलो पुरातत्व के साथ स्थानीय स्कूल शिक्षक ललित कोल, शिक्षक उमेश नामदेव और स्थानीय लोगो के अलावा भास्कर टीम मौजूद रही। इस शोध कार्य के बाद उम्मीद लगाई जा रही है कि आने वाले दिनों में बिनैकी ग्राम के ये शैलचित्र विश्व पटल पर पुरातत्व संरक्षण के लिए अंकित हो सकते हैं।
इनका कहना है।
* सर्वेक्षण में हमने 7 शैलाश्रय पाये हैं खास बात यहां ये है कि जानवरों के चित्रों के आलावा महिला पुरुष के आइडेंटिफिकेशन के लिए गुप्तांग भी उकेरे गये हैं। इसके पहले यहाँ डॉक्यूमेंटटेशन या नंबरिंग जैसे कार्य पहले यहाँ नही हुये थे अब सभी शेल्टर की नंबरिंग भी की है।
व्याख्याता डॉ रितेश लोट विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन
* यहां अधिकतर संख्या में घोड़े पर सवार योद्धा और युद्ध के चित्र मौजूद है । ज्यादातर रॉक पेंटिंग हिस्टॉरिकल पीरियड की है, इन रॉक पेंटिंग का पहले डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ था। विश्वविद्यालय द्वारा बनाए दल के बाद यह कार्य किया जा रहा है। कुछ टूल भी एकत्रित किये है जिनकी अभी जाँच की जायेगी।
व्याख्याता डॉ हेमंत लोदवाल विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन
* इसकी जानकारी भास्कर की खबर से लगी थी जिसके बाद हम यहाँ पहुँचे है, यहाँ मौजूद अधिकतर शैलचित्र ऐतिहासिक काल के है, जो करीब 2000 से 2500 साल पुराने है। मुख्य बात यहाँ ये है कि अधिकतर जगह पर सुपर एम्पोजिशन देखने मिल रही है। जिससे पता चलता है की लगातार मानव यहाँ रहे होंगे।
शुभम केवलिया जूनियर फेलो पुरातत्व  विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन
 

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