मुगल साम्राज्य का साक्षी है, पवनार का दिल्ली दरवाजा 

 मुगल साम्राज्य का साक्षी है, पवनार का दिल्ली दरवाजा 

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-05 07:36 GMT
 मुगल साम्राज्य का साक्षी है, पवनार का दिल्ली दरवाजा 

डिजिटल डेस्क, वर्धा। वर्धा जिला महात्मा गांधी व आचार्य विनोबा भावे के चरण कमलों से पावन हो चुका है। सेवाग्राम में महात्मा गांधी तथा पवनार में आचार्य विनोबा भावे के वास्तव्य के कारण पावन हो चुके इन परिसरों को ऐतिहासिक क्षेत्र माना जाता है। ऐतिहासिक महत्व प्राप्त पवनार में कई ऐतिहासिक इमारते हैं जिनमें से ही एक है पवनार का दिल्ली दरवाजा जो कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। बीते जमाने में यहां पर भव्य दरवाजे का निर्माण किया गया था परंतु यह ऐतिहासिक धरोहर पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के कारण नष्ट होने की कगार पर है। उचित देखभाल और रखरखाव के अभाव में इस भव्य दरवाजे की हालत खस्ता हो चुकी है और यह पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है।

इमारतें  हो रहीं खंडहरों में तब्दील

मुगल साम्राट शाहजहां के कार्यकाल में वर्ष 1656 से 1658 के दौरान बनाए गया यह दिल्ली दरवाजा अब अंतिम सांसें गिन रहा है। इस वास्तु का भी एक-एक हिस्सा क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। विभिन्न राजा-महाराजाओं तथा मुगल सम्राट ने इस देश पर राज किया। तत्कालीन राजाओं ने अपनी विशेष पहचान के लिए विभिन्न इमारतें भी तैयार कीं लेकिन उचित देखभाल के अभाव में यह इमारतें खंडहरों में तब्दील होती जा रही हैं। पर्वशन द्वितीय के कार्यकाल यानि इ.स. 420 से 450 के दौरान उनके साम्राज्य की राजधानी पवनार ही थी। उत्खनन में मिले ताम्रपत्र में इसका उल्लेख भी है। 

मुगल साम्राज्य का भी रहा हिस्सा

इसी प्रकार पवनार में मुगलों का भी राज रहा है। इ.स. 1627 से 1658 के दौरान मुगल सम्राट शाहजहां ने उस समय विदर्भ के सम्राट गोंड राजा को पराजित कर गोंड राजा को अपने आगे घुटने टेकने पर विवश कर दिया था। उस समय गोंड राजा ने शाहजहां के अधीन होने के बाद राजस्व देने की बात कबूल की थी। इसके एवज में शाहजहां ने गोंड राजा के क्षेत्र को सैनिक सुरक्षा भी प्रदान की थी। इसी कारण  शाहजहां ने गोंड राजा की सुरक्षा के लिए पवनार में सैनिक अड्डे का निर्माण किया था। साथ ही इसकी सुरक्षा की दृष्टि से सैनिक अड्डे के चारों ओर प्रवेश द्वार का भी निर्माण किया गया था। समय बदला और राजाओं का अस्तित्व खत्म हो गया। 

अंतिम द्वार दम तोड़ने की कगार 

तत्पश्चात चार में से तीन दरवाजे पूरी तरह नष्ट हो गए परंतु उस दौर के वैभवशाली इतिहास की गवाही देता दिल्ली दरवाजा आज भी मौजूद है लेकिन दम तोडऩे की कगार पर है। गत कुछ वर्षों में इसकी हालत अत्याधिक कमजोर हो चुकी है। ऐसे में यह भव्य द्वार किसी भी समय धराशायी हो सकता है। इस प्रवेश द्वार की दायीं तरफ का आधे से अधिक हिस्सा गिर चुका है। पुरातत्व विभाग तथा जनप्रतिनिधि यदि ध्यान दें तो इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजना संभव हो पाएगा।

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