साल 2018 : इन बातों के कारण केंद्रीय राजनीति की चर्चा में रहा नागपुर

साल 2018 : इन बातों के कारण केंद्रीय राजनीति की चर्चा में रहा नागपुर

Tejinder Singh
Update: 2018-12-30 12:09 GMT
साल 2018 : इन बातों के कारण केंद्रीय राजनीति की चर्चा में रहा नागपुर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राजनीति के मामले में सन् 2018 कांग्रेस के लिहाज से केंद्रीय स्तर पर चर्चा में रहा। चाहे पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के दो दौरे हो या फिर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का संघ मुख्यालय में आना, राष्ट्रीय स्तर पर समाचार चैनलों के कैमरे भी नागपुर की ओर रहे। भाजपा व शिवसेना पहले की तरह अपनी स्थिति सुधारने में लगी रही। खास बात यह भी रही कि, लंबे समय बाद राज्य विधानमंडल का मानसून सत्र नागपुर में हुआ। बारिश ने जमकर धोया। विधानभवन में बाढ़ आ गई। छोटे दल कहीं सक्रिय नजर नहीं आए। साल के अंत में प्रकाश आंबेडकर ने अवश्य अपनी उपस्थिति दर्ज की। उनका साथ देने के लिए एएमआईएम वाले असदुद्दीन ओवैसी नहीं आ पाए। 

चतुर्वेदी की नहीं हुई कोई सुनवाई

कांग्रेस में साल भर हलचल मची रही। गुटबाजी को लेकर दिल्ली तक दौड़ लगाने का दाैर चलता रहा। फरवरी में अचानक नया मोड़ आया। प्रदेश नेतृत्व का खुलकर विरोध कर रहे असंतुष्ट गुट के नेता सतीश चतुर्वेदी की पार्टी से छुट्टी कर दी गई। बाकायदा प्रदेश अध्यक्ष ने उनके निलंबन का पत्र जारी किया। चतुर्वेदी कहते रह गए कि, वे तो केवल कांग्रेस कार्यकर्ता बनकर जीएंगे। कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्हें लेकर दिल्ली में उठापटक का भी असर नहीं दिखा। एक माह बाद यह अवश्य हुआ कि, उनके सहयोगी नितीन राऊत को केंद्र में स्थान मिला। 

राहुल व पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी रहे चर्चा में 

राहुल गांधी ने उन्हें कांग्रेस एससी सेल की कमान सौंप दी। जून में पुन: कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इस क्षेत्र में चर्चा में रहा। अध्यक्ष राहुल गांधी समाज के हुनरमंद लोगों को प्रोत्साहन देने का आह्वान करते हुए चंद्रपुर जिले के नांदेड़ में धान की एक प्रजाति का अनुसंधान करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता को अभिवादन करने पहुंच गए। यहां राहुल की सभा ने सबका ध्यान खींचा। उसी दौरान पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में पहुंचे। कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर के समापन कार्यक्रम में उन्होंने सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के साथ मंच साझा किया। कई तरह की चर्चाएं हुईं। 

राऊत का दांव खाली गया

कांग्रेस की युवा इकाई के प्रदेश स्तरीय चुनाव की भी हलचल रही। नितीन राऊत के पुत्र कुणाल राऊत ने युकां के प्रदेश अध्यक्ष चुनाव में दांव आजमाया। कुणाल पराजित हो गए। मई में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रणजीत देशमुख छोटे पुत्र अमोल के विरोध में पुलिस थाने तक पहुंचे। उधर रणजीत देशमुख के बड़े पुत्र आशीष ने विधानसभा व भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया।  

पटोले व देशमुख को नहीं दी कोई तवज्जो

भाजपा अपनी ताकत कायम रखने का प्रयास करती रही। अगस्त में पूर्व विदर्भ में विधान परिषद चुनाव में भाजपा ने अपने कैडर बेस कार्यकर्ता रामदास आंबेडकर को उम्मीदवार बनाया। उनके विरोध में कांग्रेस-राकांपा ही नहीं शिवसेना ने भी ताकत लगायी थी। आर्थिक क्षमता को देखते हुए उम्मीदवार तय किए गए थे, लेकिन भाजपा अपने उम्मीदवार को जिताने में सफल रही। गोंदिया-भंडारा के लोकसभा उपचुनाव में हुई पराजय पर भाजपा नागपुर में लगातार मंथन करती रही। नाना पटोले के तौर पर सांसद व आशीष देशमुख के तौर पर विधायक खोने को भाजपा ने अधिक महत्व नहीं दिया। यही कहा जाता रहा कि, वे नेता तो कांग्रेस से ही आए थे। 

गडकरी ने पार्टी में सक्रियता की कमी पर जताया असंतोष

शहर भाजपा में सक्रियता की कमी ने अधिक ध्यान खींचा। नितीन गडकरी ने बाकायदा बैठकें लेकर नगरसेवकों व पदाधिकारियों के कार्यों पर असंतोष जताया। साल के आरंभ में ऐसा भी दौर आया कि, भाजपा के सभी नगरसेवकों से संगठन स्तर पर इस्तीफे ले लिए। कुछ विधायकों के कार्यों के रिपोर्ट कार्ड को लेकर भी जो खबरें आती रही वह अच्छी नहीं थी। मुंबई की बैठक में नागपुर के विधायकों को उनके काम के संबंध में लिफाफा थमाया गया। 

मानसून सत्र को लेकर सीएम फडणवीस रहे निशाने पर

जुलाई में राज्य सरकार का मानसून सत्र नागपुर में हुआ। नागपुर में शीतसत्र होता रहा है, लेकिन 34 साल बाद नागपुर में शीत के बजाय मानूसन सत्र लेने को लेकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस विपक्ष के निशाने पर रहे। मुंबई में बारिश के दौरान उत्पन्न होने वाली स्थिति को नागपुर में मानसून सत्र आयोजन का आधार बनाया गया था, लेकिन यहां सत्र के दूसरे ही दिन विधान भवन में पानी घुस गया। दो दिन तक छुट्टी रखी गई। लिहाजा मुख्यमंत्री के साथ नागपुर भी चर्चा में रहा। 

कांग्रेस की तरह काम करने का लगता रहा आरोप

नागपुर की निचली बस्तियों की बारिश में उत्पन्न होने वाली स्थिति को राष्ट्रीय स्तर पर समाचार में प्रमुखता से स्थान मिला। अक्टूबर में राज्य स्तरीय महापौर परिषद में शिवसेना के एक-दो महापौर को छोड़ केवल भाजपा के महापौर शामिल हुए। मंडल-महामंडल के गठन को लेकर भाजपा पर कांग्रेस की तरह काम करने का आरोप लगता रहा। कुछ महामंडलों को अध्यक्ष मिले। नागपुर मनपा के सत्ता पक्ष नेता संदीप जोशी महामंडल अध्यक्ष बन राज्यमंत्री का दर्जा पा गए। विधायक सुधाकर कोहले भी राज्यमंत्री बने। पर अन्य महामंडलों मामला यथावत रहा। 

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