अजा एकादशी व्रत: श्रीहरि हुए प्रसन्न, हरिश्चंद्र को मिला राजपाठ

अजा एकादशी व्रत: श्रीहरि हुए प्रसन्न, हरिश्चंद्र को मिला राजपाठ

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-17 02:30 GMT
अजा एकादशी व्रत: श्रीहरि हुए प्रसन्न, हरिश्चंद्र को मिला राजपाठ

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जन्माष्टमी के बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी को अजा एकादशी या कामिका एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अति उत्तम बताया गया है। इस एकादशी की कथा राजा हरिशचंद्र से जुड़ी है। कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं हरि को प्रसन्न करने के लिए ये व्रत रखा था। 

ये है कथा 
इस व्रत के प्रभाव से जाने अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। राजा हरिशचंद्र वीर प्रतापी और सत्यवादी राजा थे। उन्होंने अपने वचन को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया और स्वयं एक चांडाल के यहां सेवक बन गए। इस संकट से मुक्ति दिलाने का उपाय ऋषि गौतम उन्हें सुझाते हैं। महर्षि ने राजा को अजा एकादशी व्रत के बारे में बताया। राजा ने विधिपूर्वक इस व्रत को कियाए जिसका प्रभाव उन्हें शीघ्र ही देखने मिला और उनका राज्य उन्हें वापस मिल गया। 

ये ना करें

-इस व्रत में कभी भी मांगकर भोजन नहीं करना चाहिए। 
-किसी वृक्ष को नहीं काटना चाहिए। 
-दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए। 
-पूरा दिन श्रीहरि की उपासना में लगाना चाहिए। 
-व्रत पूर्ण होने के पश्चात दान का अति महत्व बताया गया है। 

ये हैं मान्यताएं

-इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से वैकुंठ की प्राप्ति होती है।
-इस एकादशी के व्रत और कथा के श्रवणमात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
-इस व्रत के प्रभाव से पूर्वजन्म की बाधाएं दूर हो जाती हैं। 
-इस व्रत को रखने वाले मनुष्य को अपनी इंद्रियोंए आहार और व्यवहार पर संयम रखना चाहिए।
-यह व्रत मन को निर्मलए हृदय को शुद्ध करता है। मनुष्य को सद्मार्ग की ओर प्रेरित करता है। 

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