रक्षाबंधन: पाताल लोक में भद्रा का वास, रात में दिखेगा चूड़ामणि चंद्रग्रहण
रक्षाबंधन: पाताल लोक में भद्रा का वास, रात में दिखेगा चूड़ामणि चंद्रग्रहण
डिजिटल डेस्क, भाेपाल। रक्षाबंधन 7 अगस्त सोमवार को है। इस दिन चंद्रग्रहण भी होगा। ज्योतिष के अनुसार मेष, सिंह, वृश्चिक और मीन राशि के लोगों के लिए यह शुभ और वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु, मकर और कुंभ राशि के जातक के लिए यह ग्रहण कष्टकारक होगा। सोमवार सावन पूर्णिमा को भद्रा सुबह 10.30 तक है। सुबह 6:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे के बीच ही बहनें भाई को रक्षा बांधें।
इसके बाद चंद्रग्रहण का सूतक लगता है। फलस्वरूप सभी मंदिरों के पट दोपहर 2.00 बजे से बंद हो जायेंगे। पूर्णिमा रात 11.02 बजे तक है। भद्राकाल को अशुभ माना जाता है, लेकिन हमेशा नहीं। चंद्रमा अलग-अलग राशियों के भ्रमण काल में अलग-अलग स्थान (लोकों) पर भद्रा का वास स्थापित करता है।
जैसेः मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक राशि का चंद्रमा - भद्रा वास स्वर्ग लोक
कर्क, सिंह, कुम्भ, मीन राशि का चंद्रमा - भद्रा वास पृथ्वी लोक
कन्या, तुला, धनु, मकर राशि का चंद्रमा - भद्रा वास पाताल लोक में
भद्रा जिस लोक में वास करती है, उसी लोक को प्रभावित करती है। भद्रा की पूंछ (निकलते समय) में भी कोई काम कर सकते हैं। रक्षा बंधन के दिन चंद्रमा मकर राशि में होने से भद्रा का वास पाताल लोक में रहेगा। इसलिए इस बार पृथ्वी लोक पर कोई अशुभ प्रभाव नहीं होगा। रक्षा बंधन का त्योहार दोपहर 2 बजे तक बिना किसी त्रुटि के निर्विघ्न रूप से मनाया जायेगा।
चूड़ामणि ग्रहण क्यों?
रविवार और सोमवार को चंद्रग्रहण हो, तो चूड़ामणि ग्रहण कहलाता है। स्नान, दान, जप, गुरु दीक्षा में सामान्य ग्रहण से इस ग्रहण का मान करोड़ गुणा बढ़ जाता है। इसलिए ग्रहण काल और इसके बाद नदी, तीर्थ स्थल, तालाब आदि में स्नान कर दान आदि करें। इस समय दीपक जला कर जो जप, पाठ किया जाता है, उसकी सिद्धि होती है।
रामरक्षा स्तोत्र के पाठ
ग्रहण काल में पितरों को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और गायत्री मंत्र का जप करें। हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, रामरक्षा स्तोत्र के पाठ के साथ-साथ भजन आदि भी करें। ग्रहण समाप्त होने पर स्नान कर अन्न, वस्त्र आदि का दान करें। ग्रहण का सूतक काल शुरू होने से पहले भोजन की सामग्री, जो पका हुआ (चावल, दाल आदि) हो, उसमें तुलसी दल या साफ कुश डाल दें।
तेल, घी से बना या सूखे फल, मिठाई, अचार, पनीर आदि में कुश या तुलसी दल डालने की जरूरत नही है। ग्रहण खत्म होने के बाद बाद सर्वोसधी, नवग्रह लकड़ी के जल से स्नान करें। चंद्र हेतु अरवा चावल, दही, दूध, घी, रुई आदि का दान करें।
ग्रहण काल में रोगी, वृद्ध और बच्चों को भोजन, दवा आदि दी जा सकती है। ग्रहण काल में खाना, पीना, सोना, तेल लगाना आदि नहीं करना चाहिए। ग्रहण काल में गर्भवती महिलाओं को कैंची, चाकू आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त :- सुबह 6.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक