गुप्त नवरात्रि : यहां मूर्ति की गर्दन के दोनों ओर से प्रवाहित होता है रक्त

गुप्त नवरात्रि : यहां मूर्ति की गर्दन के दोनों ओर से प्रवाहित होता है रक्त

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-18 03:54 GMT
गुप्त नवरात्रि : यहां मूर्ति की गर्दन के दोनों ओर से प्रवाहित होता है रक्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुप्त पूजा और तंत्र साधना के लिए गुप्त नवरात्रि सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। मां शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा इन दिनों विधि-विधान से होती है जो कि अत्यंत कठिन हैं। कहा जाता है कि इन दिनों में पूजा करना साधारण व्यक्ति के बस की बात नही है। इसी कड़ी में आज हम आपको छिन्नमस्तिका के मंदिर की ओर लेकर जा रहे हैं, जो कि झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम तट पर मां छिन्नमस्तिके मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह स्थान अपने आप में बेहद अद्भुत है। आपको जानकर आश्चर्य होगा, किंतु यहां जो मूर्ति स्थापित है उसके गले के दोनों ओर से हमेशा रक्तधारा प्रवाहित होती रहती है। कामाख्या मंदिर के समान ही यह लगभग दुनियाभर में प्रसिद्ध है। 

अन्य मंदिर भी मौजूद
रजरप्पा में मौजूद यह स्थान बेहद अलौकिक है। मां छिन्नमस्ता के अतिरिक्त यहां महाकाली व सूर्य मंदिर भी मौजूद है। यहां पास ही एक कुंड भी मौजूद है। जिसके बारे में मान्यता है कि यहां स्नान करने से समस्त रोग संताप दूर हो जाते हैं। यह मंदिर अपने अनोखे होने की वजह से इतना फेसम है कि हर साल ही यहां लाखों की संख्या में भक्त माता के दर्शनों के लिए आते हैं। 

प्रकट होने की कहानी 

छिन्नमस्ता के प्रकाट्य के संबंध में कहा जाता है कि देवी की सखियों जया और विजया को एक बार भूख लगीं। वे भूख से परेशान होने लगीं। देवी ने उन्हें कुछ पल ठहरने के लिए कहा, किंतु वे भूख की वजह से विलाप करने लगीं। इस पर दोनों कहा कि मां अपनी संतान की भूख फौरन ही मिटाती है। इसके संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह सुनते ही मां ने स्वयं ही अपनी गर्दन खडग से काटी जिससे तीन धाराएं बहीं, दो उन्होंने जया विजया की ओर की जबकि एक से स्वयं रसपान किया। तभी से यह छिन्नमस्ता के रूप में जानीं गईं। 

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