आज मनाई जा रही है आंवला नवमी, ऐसे करें पूजा

आज मनाई जा रही है आंवला नवमी, ऐसे करें पूजा

Manmohan Prajapati
Update: 2018-11-15 06:10 GMT
आज मनाई जा रही है आंवला नवमी, ऐसे करें पूजा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है, जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। जो इस वर्ष  17 नवंबर 2018 दिन शनिवार को मनाई जा रही है। इस दिन महिलाएं आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर संतान प्राप्ति और उनकी रक्षा के लिए यह व्रत पूरे विधि-विधान और पूजा एवं प्रार्थना से करती हैं। इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। पूरे उत्तर व मध्य भारत में इस नवमी का विशेष महत्व है। आइए आंवला नवमी की कथा और पूजा विधि के बारे में जानते हैं।

आंवला नवमी पूजा करने की विधि
महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि कर आंवला वृक्ष के समीप जाती हैं। उसके आसपास साफ-सफाई कर आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करती हैं। उसकी जड़ में कच्चा दूध डाल कर पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करतीं हैं और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली को आठ परिक्रमा करते हुए लपेटतीं हैं। कई जगह महिलाएं 108 परिक्रमा भी की करती हैं। इसके बाद परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करते हुए आंवला वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन करतीं है।

आंवला नवमी की कथा
पुराणिक काल में काशी नगर में एक निःसंतान किन्तु धर्मात्मा जैसा वैश्य रहता था। एक दिन उस वैश्य की पत्नी से उसकी एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराये लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें संतान प्राप्त हो सकती है। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने मना कर दिया। परंतु उसकी पत्नी अवसर की प्रतीक्षा करने लगी। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। संतान लाभ के स्थान पर उसके पूरे शरीर में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। और फिर वैश्य के बार-बार पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।

यह बात सुनकर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस विश्व में कहीं स्थान नहीं है। इसलिए तू अब गंगा तट पर जाकर विष्णु भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से मुक्ति पा सकती है। वैश्य की पत्नी सारी बात सुनकर रोग मुक्त होने के लिये माता गंगा की शरण में चली गई। 

तब गंगा जी ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी। तब उस महिला ने गंगा जी के बताए अनुसार इस कार्तिक नवमी तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया और वह कुछ समय बाद ही रोगमुक्त हो गई। इस कार्तिक नवमी का व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति भी हुई। तभी से सनातन धर्म में इस व्रत को करने का प्रचलन तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

इस दिन आंवले के वृक्ष की छांओ में बैठकर भोजन करने की प्रथा भी चलन में है। किन्तु क्या आप जानते हैं कि आयुर्वेद में चमत्कारी बताए हुए आंवला की उत्पत्ति कैसे हुई है....?

कैसे उत्पन्न हुआ आंवला...?
पुराणों में दिया गया है कि जब सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो गई थी और इस पर जीवन नहीं था, तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प पर विराजमान होकर निराकार परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे। उस समय ब्रम्हा जी के नेत्रों से परमब्रह्म ईश्वर के प्रेम अनुराग में टपके आंसू और ब्रम्हा जी के इन्ही आंसूओं से आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ, जिससे इस बहुगुणी चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई।

आयुर्वेद और विज्ञान में भी आंवले का महत्व बताया गया है और आचार्य चरक ने तो आंवले को एक अमृत फल कहा है, जो कई रोगों को नष्ट करने में सफल पाया गया है। साथ ही विज्ञान के अनुसार भी आंवले में विटामिन सी की बहुतायता होती है। जो कि इसे उबालने के बाद भी इसमें पूर्ण रूप से बना रहता है। यह आपके शरीर में रक्तकोषाणुओं के निर्माण को बढ़ाता है, जिस कारण शरीर स्वस्थ बना रहता है।

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