गजब ! इस मंदिर में भगवान खुद देते हैं मौसम और फसलों की जानकारी

गजब ! इस मंदिर में भगवान खुद देते हैं मौसम और फसलों की जानकारी

Bhaskar Hindi
Update: 2017-07-16 08:06 GMT
गजब ! इस मंदिर में भगवान खुद देते हैं मौसम और फसलों की जानकारी

डिजिटल डेस्क, कोटा। आपने दुनिया के कई मंदिरों के दर्शन किए होंगे और उनके बारे में कई तरह की रोचक बातें भी आपको अक्सर सुनने को मिलती होगी। जिनपर आपको विश्वास तो नहीं होता होगा, लेकिन यहां के चमत्कार और लोगों की बातें इस पर भरोसा करने के लिए मजबूर कर देती हैं। लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, वो अपने आप में बहुत खास है, क्योंकि इस मंदिर के भगवान मौसम की भविष्यवाणी से लेकर फसलों की पैदावार के बारे में तक सबकुछ बताते हैं। 

ब्रजनाथ जी का ये मंदिर राजस्थान के कोटा के पूर्व राजपरिवार के गढ़ पैलेस में है। यहां के लोगों की इस मंदिर में बहुत आस्था है, क्योंकि ये मंदिर सिर्फ गांव के मौसम या फसल की भविष्यवाणी ही नहीं करता, बल्कि गांव वासियों की सुख-समृद्धि का फैसला भी करता है। राव मधोसिंह म्यूजिम ट्रस्ट के क्यूरेटर आशुतोष आचार्य का मानना है कि यह कोई ज्ञान-विज्ञान का सवाल नहीं है, बल्कि ठाकुरजी के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास का सवाल है।

कैसे लगाते हैं अनुमान?
आचार्य के अनुसार आषाढी पूर्णिमा की शाम की आरती के बाद तिल, मक्का, मूंग, चावल, ज्वार, धनिया सहित कई प्रमुख अनाजों को एक निश्चित मात्रा में सफेद कपड़े में लपेटकर मंदिर में रख दिया जाता है। इसके बाद अगले दिन की मंगला आरती के बाद इनको नापा जाता है। लोगों की आस्था है, कि दूसरे दिन भगवान की कृपा से इन अनाजों की मात्रा में घटत-बढ़त हो जाती है। मान्यता है कि जिस अनाज की मात्रा में वृद्धि होती है, उसकी पैदावार अच्छी होती है और जिस अनाज की मात्रा में कमी होती है, उसकी पैदावार कम होती है। जबकि जिस अनाज की मात्रा पहले जितनी ही रहती है, उसकी पैदावार न ही कम होती है और न ही ज्यादा।

150 साल पुरानी है ये परंपरा

इस मंदिर में करीब 150 सालों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर में ये परंपरा महाराव भीम सिंह प्रथम के समय से ही चली आ रही है। उन्होंने वल्लभकुल संप्रदाय को अपना लिया था और वो भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से यहां पर फसलों की पैदावार को लेकर अनुमानन लगाया जाता है, उसी तरह आषाढी पूर्णिमा के दिन ही गढ़ पैलेस की प्राचीर पर खड़े होकर हवा की गति से बारिश का अनुमान लगाया जाता है। इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1777 में कोटा रियासत के राजा अर्जुन सिंह ने करवाया था।

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