10 मई को खुलेंगे बद्रीनाथ के कपाट, जानें मंदिर से जुड़ी खास बातें

10 मई को खुलेंगे बद्रीनाथ के कपाट, जानें मंदिर से जुड़ी खास बातें

Manmohan Prajapati
Update: 2019-05-06 05:50 GMT
10 मई को खुलेंगे बद्रीनाथ के कपाट, जानें मंदिर से जुड़ी खास बातें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में चार धाम यात्रा का अत्यधिक महत्व बताया गया है। प्राचीन पुराणों के अनुसार ये चारों धाम भगवान शिव तथा भगवान विष्णु की आराधना के स्थल हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इन तीर्थस्थलों के दर्शन से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं और मृत्योपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि उत्तराखण्ड की इस चार धाम की यात्रा में चौथा पड़ाव बद्रीनाथ को माना जाता है। यदि आप बद्रीनाथ के दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको बता दें कि बद्री नाथ के कपाट 10 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। 

बद्रीनाथ के कपाट ब्रह्म मुहूर्त में प्रात: 4 बजकर 15 मिनट पर खोले जाएंगे। इससे पहले 7 मई यानी मंगलवार को यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखण्ड की चार धाम की इस यात्रा की शुरुआत हुई। आइए जानते हैं बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी खास बातें...

बद्रीनाथ मंदिर का महत्व
जैसा कि ज्ञात है कि चारों धाम की यात्रा भगवान शिव तथा भगवान विष्णु की आराधना के स्थल हैं। इनमें से उत्तराखंड में चमोली जिले के बद्रीनाथ शहर में स्थित बद्रीनाथ या बद्रीनारायण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्‍यता के अनुसार केदारनाथ धाम, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा के बाद यदि आपने बद्रीनाथ धाम की यात्रा नहीं की तो आपकी चारधाम यात्रा अधूरी मानी जाती है। 

बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना
माना जाता है किक ऋषिकेश से 214 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वी सदी में करवाया था। वहीं सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी। बता दें कि यह मंदिर तीन भागों गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप में विभाजित है। बद्रीनाथ जी के मंदिर के अन्दर 15 मूर्तियां स्थापित हैं। इनमें भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है। 

कैसे पड़ा बद्रीनाथ मंदिर का नाम
इस मंदिर को “धरती का वैकुण्ठ” भी कहा जाता है। चारों धाम की यात्रा में महत्वपूर्ण माने जाने वाले इस मंदिर का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा? इसके पीछे एक रोचक कथा है। मान्‍यता है कि एक बार देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु से रूठकर मायके चली गईं। उस दौरान भगवान विष्णु देवी ने लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या शुरु की। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई, तो देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुंच गई, जहां भगवान विष्णु तपस्या कर रहे थे। उस समय उस स्थान पर बदरी (बेड) का वन था, बेड के पेड़ में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी। इसलिए लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को ‘बद्रीनाथ’ नाम दिया।

पौराणिक कथा के अनुसार
पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान केदार भूमि के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णु अपने ध्यानयोग के लिए एक स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिवभूमि यानी केदार भूमि का यह स्थान बहुत पसंद आया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के पास) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे। उनके रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती और शिवजी उस बालक के पास आए और उस बालक से पूछा कि तुम्हे क्या चाहिए? तो बालक ने ध्यानयोग करने के लिए शिवभूमि (केदार भूमि) का स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव पार्वती से शिवभूमि (केदार भूमि) को अपने ध्यानयोग करने के लिए प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से भी जाना जाता है।

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