बगलामुखी जयंती 2018: रोग, शोक और शत्रु को समूल नष्ट कर देती हैं मां बगलामुखी

बगलामुखी जयंती 2018: रोग, शोक और शत्रु को समूल नष्ट कर देती हैं मां बगलामुखी

Bhaskar Hindi
Update: 2018-04-18 10:13 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। 23 अप्रैल 2018 को माँ बगलामुखी जयंती है। जो भी व्यक्ति हमारे शत्रु हैं, मां बगलामुखी उनका अनिष्ट करती हैं। इनकी आराधना-उपासना तुरंत फलदायी मानी जाती है। कहा जाता है कि मां के भक्तों की कभी पराजय नहीं होती। तांत्रिक पद्धति से की गई मां बगलामुखी की पूजा त्वरित और तीव्र परिणाम देती है। यदि शत्रु भारी पड़ रहे हों, मुकदमे पीछा नहीं छोड़ रहे हों, मेहनत करने के बाद भी व्यापार ठप पड़ा हो तो ऐसे विकट समय में मां बगलामुखी की पूजा करना चाहिए, इसके शुभ परिणाम आपको निश्चित ही देखने को मिलेंगे।

मां बगलामुखी कथा

हिन्दू धर्म के अनुसार एक बार सतयुग में ब्रह्मांडको नष्ट करने वाला तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे समस्त लोक में हाहाकार मच गया और सभी लोग संकट में आ गए। इस संकट की समस्या में भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए। जब भगवान विष्णु को कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने शिवजी का स्मरण किया। तब भगवान शिवजी ने कहा कि यदि कोई इस विनाश को रोक सकता है तो वो है शक्ति रूप। आप उनके शरण में जाएं। उसके बाद भगवान विष्णु ने कठिन तपस्या कर शक्ति रूप देवी को प्रसन्न किया। तदोपरांत माता बगलामुखी देवी प्रकट हुईं और समस्त लोकों को इस संकट से उबारा। अतः इस दिन से समस्त लोकों में माता बगलामुखी का प्रादुर्भाव हुआ।
 


मां बगलामुखी हवन सामग्री 

इनके हवन में पिसी हुई शुद्ध हल्दी, मालकांगनी, काले तिल, गूगल, पीली हरताल, पीली सरसों, नीम का तेल, सरसों का तेल, बेर की लकड़ी, सूखी साबुत लाल मिर्च आदि का उपयोग किया जाता है।

मां बगलामुखी व्रत, पूजन विधि 

  • प्रातः काल उठकर नित्य कर्मों से निवृत होकर पीले रंग के वस्त्र धारण करें। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार व्रती को साधना अकेले मंदिर में अथवा किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर माता बगलामुखी की पूजा करनी चाहिए। पूजा की दिशा पूर्व में होना चाहिए
  • पूर्व दिशा में उस स्थान को जहां पर पूजा करना है। उसे सर्वप्रथम गंगाजल से पवित्र कर लें। तत्पश्चात उस स्थान पर एक चौकी रखकर उस पर माता बगलामुखी की प्रतिमूर्ति को स्थापित करें
  • इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं, आसन पवित्र करें। माता बगलामुखी व्रत का संकल्प हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, और पीले फूल तथा दक्षिणा लेकर करें
  • माता की पूजा धूप, दीप, अगरबत्ती और विशेष पीले फल, पीले फूल, पीले लड्डू का प्रसाद चढ़ाकर करें
  • ध्यान रखें कि इस दिन निराहार व्रत किया जाता है। शाम के समय पूजा के बाद फलाहार ग्रहण कर सकते हैं। 

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