धरती पर यहां साक्षात रूप में मौजूद रहती हैं 'मां सरस्वती'

धरती पर यहां साक्षात रूप में मौजूद रहती हैं 'मां सरस्वती'

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-18 04:36 GMT
धरती पर यहां साक्षात रूप में मौजूद रहती हैं 'मां सरस्वती'

 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दंडकारण्य और लेह ऐसे दो प्राचीन स्थल हैं जो देवी सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हैं। दंडकारण्य आंध्र प्रदेश में स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि ऋषि वेद व्यास द्वारा इसे बनाया गया था। यह आंध्र प्रदेश में आदिलाबाद जिले के मुधोल बासर गांव में स्थित है। यह स्थान बेहद अद्भुत और अनोखा है। ठीक इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर के लेह में मां सरस्वती का दूसरा मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि यहां मां सरस्वती साक्षात निवास करती हैं। 


पद्मासन मुद्रा में विराजीं हैं मां सरस्वती
बासर गांव मंदिर को लेकर कहा जाता है कि महाऋषि वेद व्यास एक बार जब मानसिक शांति की तलाश में तीर्थ यात्रा पर निकले तब वे दंडकारण्य की सुंदरता को देख यहीं ठहर गए। जिस स्थान पर आज यह मंदिर स्थापित है। यहां पहले एक सुरंग भी हुआ करती थी, जिसके जरिए राजा-महाराजा यहां आया करते थे। ऐसी भी मान्यता है कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना से पूर्व इसी स्थान पर मां सरस्वती की पूजा कर उनसे इसके निर्विघ्न संपन्न होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस मंदिर के समीप गोदावरी नदी तट पर महर्षि वाल्मीकि की समाधि भी देखने मिलती है। यहां माता सरस्वती पद्मासन मुद्रा में देखने मिलती हैं।

 


 

ग्रंथ की रचना होती है विश्वव्यापी

ऐसी मान्यता है कि जो भी इस स्थान पर मां सरस्वती का पूजन, दर्शन करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विद्या के साथ बुद्धि और कला का भी वरदान प्राप्त होता है। यदि वह किसी ग्रंथ की रचना कर रहा है तो यहां माता के दर्शनों से उस ग्रंथ की रचना विश्वव्यापी साबित होती है। इसके संबंध में विभिन्न मान्यताएं हैं जिसकी वजह से लोग और कलाप्रेमी यहां आते हैं। बासर नाम से प्रसिद्ध हो चुके इस गांव में 8 अनोख ताल हैं जो वाल्मीकि तीर्थ, विष्णु तीर्थ, गणेश तीर्थ, पुथा तीर्थ के नाम से जाने जाते हैं।

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