जानिए कैसे करें गायत्री साधना और सिद्धि?
जानिए कैसे करें गायत्री साधना और सिद्धि?
डिजिटल डेस्क। गायत्री जप से पहले गायत्री शाप विमोचन करना अत्यावश्यक है। वास्तव में तो गायत्री दुर्गा आदि शक्तियां परब्रह्म स्वरूपा है अतः इन्हें शापित करना सर्वथा असंभव है। फिर भी ऋषियों ने इन महाशक्तियों को कीलित या शापित किया है तो वह कीलन इन महाशक्तियों का न होकर सामान्य साधकों का है। उन्होंने साधकों को कीलित किया है ताकि अनाधिकारी व्यक्ति उस मार्ग पर जा सके। ब्रह्मा वशिष्ठ विश्वामित्र और शुक्र यह चारों ऋषि अपने आप में अद्वितीय हैं। अतः इन्होंने सामान्य साधकों के प्रवेश को रोकने के लिए गायत्री के मार्ग को कीलित किया है, गायत्री को नहीं। जैसे मेघ का टुकड़ा हमारे नेत्रों को ही आच्छादित करता है सूर्य को नहीं। ठीक ऐसे ही गायत्री आदि महाशक्तियों का कीलन साधकों का ही कीलन है महाशक्ति का नहीं। अतः साधक साधना से पहले गायत्री साधना के मार्ग को शाप विमुक्त करके ही इस मार्ग में प्रवृत्त हो। तब सफलता प्राप्ति में सुगमता हो जाएगी।
जप यज्ञ श्रेष्ठ क्यों?
ज्ञानयज्ञ, जपयज्ञ तथा अग्निहोत्र आदि से जपयज्ञ को श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में यह स्वीकार किया है कि यज्ञों में मैं जपयज्ञ हूं। जपयज्ञ श्रेष्ठ होने के अनेक कारण हैं।
- अधिक सामग्री की आवश्यकता नहीं होती।
- इसमें जीव जंतुओं के भी आहत होने का भय नहीं है।
- इसमें किसी विधि विधान में त्रुटि होने का भी भय नहीं है।
- इसे दरिद्र से दरिद्र व्यक्ति भी कर सकता है।
- इसमें पंडित या पुरोहित आदि की भी आवश्यकता नहीं है।
इसीलिए निम्न सूक्तियां जप की महत्ता को ही प्रतिपादित करते हैं।
जपतो नास्ति पातकम्- जप करने वाले को पाप नहीं लगता।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि -यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूं।
यावन्त: कर्मयज्ञा: स्यु:प्रदिष्टानि तपांसि च।
सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्।।
सर्व तप-जप की सोलहवीं कला के तुल्य भी नहीं है।
जप को स्वाध्याय भी कहा गया है ।
स्वाध्याय स्यान्मंत्रजाप:।
जपलक्षण-
मन के मध्य मंत्र स्थित हो और मंत्र के मध्य में मन स्थित हो।
इस प्रकार मन और मंत्र के सम्मेलन की अवस्था ही जप है।
मनो मध्ये स्थितं मंत्रो, मंत्रमध्ये स्थितं मन:।
मनोमंत्रसमायुक्तं,एतच्च जपलक्षणम्।।
जप के शत्रु
नासिका ध्वनि, थूकना, जम्हाई लेना, क्रोध, निद्रा, आलस्य, हिचकी, मद, पतित व्यक्ति को देखना, कुत्ते और पापी व्यक्ति को देखना, यह सब जप में बाधा माने गए हैं। इनसे बचें। अतः शांत चित्त से ही जप करें। आसन पर बैठकर और उचित दिशा में मुंह करके ही जप करें और जप के बाद आसन के नीचे की मिट्टी मस्तक पर लगाकर ॐ शुक्राय नमः कहकर ही आसन छोड़ें।
माला जप के समय वस्त्र से ढकी रहे और सुमेरू उल्लंघन न हो । गुरु के मार्गदर्शन से ही जप के रहस्य को समझें। जप से पूर्व माला का संस्कार अवश्य करें। संस्कारविधि ग्रंथों से या गुरु मुख से समझें। अन्य मंत्र सिद्ध किए जा सकते हैं किंतु गायत्री और वेद के समस्त मंत्र स्वयं सिद्ध हैं। गायत्री मंत्र चारों आश्रमों में स्थित व्यक्तियों के लिए उपयुक्त माना गया है। गृहस्थी और ब्रह्मचारी नित्य 108 बार अवश्य जपें। वानप्रस्थ और संन्यासी 1008 जप नित्य करें।
गृहस्थो ब्रह्मचारी वा,शतमष्टोत्तरं जपेत्।
वानप्रस्थे यतिश्चैव,जपेदष्टसहस्रकम्।।