डोल ग्यारस: इस पूजा से मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल, ध्यान रखें ये बातें

डोल ग्यारस: इस पूजा से मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल, ध्यान रखें ये बातें

Manmohan Prajapati
Update: 2019-09-09 10:02 GMT
डोल ग्यारस: इस पूजा से मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल, ध्यान रखें ये बातें

डिजिटल डेस्क। कृष्णा जन्माष्टमी के बाद आने वाली एकादशी को डोल ग्यारस कहते हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी, पार्श्व एकादशी, पद्मा एकादशी, जलझूलनी एकादशी और वामन एकादशी भी कहा जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और उनके आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है। इस बार यह ग्यारस 09 सितंबर सोमवार यानी कि आज मनाई जा रही है।

मिलेता है ये फल
एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान कृष्ण की भक्ति करने का विधान है। इस व्रत में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस व्रत को करने से सभी तरह की कामना पूर्ण होती है तथा रोग और शोक मिट जाते हैं।इस दिन व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। जो मनुष्य भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।

तिथि और शुभ मुहूर्त 
परिवर्तिनी (पार्श्व) एकादशी की तिथि: 09 सितंबर 2019
एकादशी तिथि प्रारंभ:  08 सितंबर 2019 को रात 10 बजकर 41 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 10 सितंबर 2019 को सुबह 12 बजकर 30 मिनट तक
पारण का समय: 10 सितंबर 2019 को सुबह 07 बजकर 04 मिनट से 08 बजकर 35 मिनट तक

ग्यारस का महत्व  
डोल ग्यारस के इस अवसर पर कृष्ण मंदिरों में पूजा-अर्चना होती है। भगवान कृष्ण की प्रतिमा को "डोल" (रथ) में विराजमान कर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। इस अवसर पर कई गांव-नगर में मेले, चल समारोह और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। इसके साथ ही डोल ग्यारस पर भगवान राधा-कृष्ण के एक से बढ़कर एक नयनाभिराम विद्युत सज्जित डोल (रथ) निकाले जाते हैं।  

इस दिन शाम होते ही मंदिरों में विराजमान भगवान के विग्रह चांदी, तांबे, पीतल के बने विमानों में बैठकर गंधीगर के टपरा पर ढोल नगाढ़ों और बैंड की भक्ति धुनों के बीच एकत्र होने लगते हैं। अधिकांश विमानों को श्रद्धालु कंधों पर लेकर चलते हैं।

माना जाता है कि वर्षा ऋतु में पानी खराब हो जाता है, लेकिन एकादशी पर भगवान के जलाशयों में जल बिहार के बाद उसका पानी निर्मल होने लगता है। शोभायात्रा में सभी समाजों के मंदिरों के विमान निकलते है। कंधों पर विमान लेकर चलने से मूर्तियां झूलती हैं।  

ध्यान रखें ये बातें
- इस दिन दान करना परम कल्‍याणकारी माना जाता है।
- रात के समय सोना नहीं चाहिए, भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए।
- अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें। 
- इसके बाद अन्‍न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।

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