बकरीद आज : अल्लाह के हुक्म पर कुर्बानी का पर्व

बकरीद आज : अल्लाह के हुक्म पर कुर्बानी का पर्व

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-31 03:34 GMT
बकरीद आज : अल्लाह के हुक्म पर कुर्बानी का पर्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस्लाम धर्म में हर साल दो ईद (ईद-उल-फितर और ईद-उल-जुहा) मनाई जाती है। इस वर्ष ईद-उल-जुहा (बकरीद) 2 सितंबर शनिवार को मनाई जा रही है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक ईद-उल-जुहा 12वें महीने धू अल-हिज्जा के दसवें दिन मनाई जाती है। ईद-उल-जुहा के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को बधाई दी है।

इस्लाम धर्म में बकरीद को कुर्बानी का पर्व कहा गया है। बकरीद के दिन अपनी किसी प्रिय चीज की अल्लाह के लिए कुर्बानी देनी होती है। हालांकि अब बकरे और कुछ देशों में भैंस या ऊंट की कुर्बानी देने की रिवाज है।

बांटते हैं दो हिस्से 

बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह के नाम बकरे की कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा कुर्बानी करने वाले खुद के घर में रख लेते हैं और दो हिस्से बांट देते हैं। कुर्बानी बकरीद की नमाज पढ़ने के बाद दी जाती है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नवीन या साफ कपड़े पहनकर मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हैं।  

दान की परंपरा 

इस्लाम धर्म में ईद के अवसर पर गरीबों को दान देने की परंपरा है। इस दिन दान देना बेहद जरूरी बताया गया है। लोग अपनी आय के मुताबिक जकात फितरा भी देते हैं।  बताया जाता है कि इस्लाम में कहा गया है कि किसी भी त्योहार को मनाते वक्त ये ध्यान रखना चाहिए कि आपके पड़ोसी के घर में भी उतनी ही खुशियां हों। 

ये है कहानी  

इब्राहीम अलैय सलाम नामक एक व्यक्ति थे, जिन्हें सपने में अल्लाह का हुक्म आया कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें, उन्हें अपना बेटा इस्माइल सबसे प्यारा था। यह इब्राहीम अलैय सलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ थी अपने बेटे से मुहब्बत और एक तरफ था अल्लाह का हुक्म, लेकिन अल्लाह का हुक्म ठुकराना मतलब उनकी ताैहीन, जो इब्राहीम अलैय सलाम को कभी भी कुबूल ना था। जिसके बाद उन्होंने  अल्लाह के हुक्म को पूरा करने का निर्णय बनाया और अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए। 

कहा जाता है कि जैसे ही इब्राहीम अलैय सलाम छुरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने बिजली की तेजी से आकर बच्चे की जगह मेमन रख दिया। जिससे बच्चे की जान बच गई। माना जाता कि यहीं से इस पर्व की शुरुआत हुई। 

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