गुरु अंगददेव ने किया था गुरुमुखी का अविष्कार, जानें कैसा रहा इनका जीवन

गुरु अंगददेव ने किया था गुरुमुखी का अविष्कार, जानें कैसा रहा इनका जीवन

Manmohan Prajapati
Update: 2019-04-27 12:24 GMT
गुरु अंगददेव ने किया था गुरुमुखी का अविष्कार, जानें कैसा रहा इनका जीवन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सिक्ख सम्प्रदाय के दूसरे गुरु अंगददेव जी का जन्म वैशाख मास शुक्ल पक्ष की एकम विक्रम संवत 1561 में  मत्ते ग्राम की सराय जिला फिरोजपुर में फेरुमल और दयाकौर के परिवार में हुआ था। इस वर्ष गुरु अंगददेव जी की जयंती 5 मई 2019 को मनाई जाएगी। इस दिन पर गुरुद्वारों में भव्य कार्यक्रम और गुरुग्रंथ साहिब का पाठ किया जायेगा। एवं सामूहिक भोज (लंगर) का आयोजन किया जाएगा। इस दिन खडूर साहिब में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। अंगददेव जी को लहना (लहीणा) नाम से भी जाना जाता है। गुरु अंगद देव जी के जन्मोत्सव को "अंगददेव जयंती’ के रूप में मनाया जाता है।

कौन थे गुरु अंगददेव और कैसा रहा जीवन ?
सिक्खों में गुरु की पदवी प्राप्त करने के लिए कई परीक्षाएं दी जाती हैं। सभी परीक्षाओं व आदेशों का पालन गुरु-भक्ति के भाव से करने के कारण ही गुरु अंगददेव जी को गुरु पद की उपाधि प्राप्त हुई थी। गुरु अंगददेव जी ने ‘गुरुमुखी’ (पंजाबी लिपि) का आविष्कार किया। साथ ही गुरु नानकदेव की वाणी को लेखों के रूप में संजोए रखा। जात-पात से परे हटकर गुरु अंगद जी ने ही लंगर की प्रथा चलाई।

22 सितम्बर 1539 को गुरू नानक साहिब जी की ज्योति जोत समाने के बाद गुरू अंगद साहिब करतारपुर छोड़ कर खडूर साहिब गांव (गोइन्दवाल के समीप) चले गए। उन्होंने गुरू नानक साहिब जी के विचारों को दोनों ही रूप में, लिखित एवं भावनात्मक, प्रचारित किया। विभिन्न मतावलम्बियों, मतों, पंथों, सम्प्रदायों के योगी एवं संतों से उन्होंने आध्यात्म के विषय में गहन वार्तालाप किया। गुरु अंगददेव जी ने बच्चों की शिक्षा में विशेष रूचि ली। उन्होंने विद्यालय व साहित्य केन्द्रों की स्थापना की। 

63 श्लोकों की रचना
नवयुवकों के लिए उन्होंने मल्ल-अखाड़ा की प्रथा आरम्भ की। जहां पर शारीरिक ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक नैपुण्यता प्राप्त होती थी। उन्होंने भाई बाला जी से गुरू नानक साहिब जी के जीवन के तथ्यों के बारे में जाना एवं गुरू नानक साहिब जी की जीवनी लिखी। उन्होंने 63 श्लोकों की रचना की, जो कि गुरू ग्रन्थ साहिब जी में अंकित हैं। उन्होंने गुरू नानक साहिब जी द्वारा चलाई गई "गुरू का लंगर" की प्रथा को सशक्त तथा प्रभावी बनाया।

केन्द्रों का भ्रमण
गुरू अंगददेव जी ने गुरू नानक साहिब जी द्वारा स्थापित सभी महत्वपूर्ण स्थानों एवं केन्द्रों का भ्रमण किया। उन्होंने सैकड़ों नई संगतों को स्थापित किया और इस प्रकार सिख धर्म के आधार को बल दिया। क्योंकि सिक्ख धर्म का शैशवकाल था, इसलिए सिक्ख धर्म को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

अमरदास साहिब को गुरुपद
गुरू अंगददेव जी ने गुरू नानक साहिब द्वारा स्थापित परम्परा के अनुरूप अपनी मृत्यु से पहले अमरदास साहिब को गुरुपद प्रदान किया। उन्होंने गुरमत विचार-गुरु शब्द रचनाओं को गुरू अमर दास साहिब जी को सौंप दिया। उन्होंने खडूर साहिब के निकट गोइन्दवाल में एक नए शहर का निर्माण कार्य शुरू किया था एवं गुरू अमरदास जी को इस निर्माण कार्य की देख रेख का भार दिया था।

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