जानें शास्त्राधारित गुरु दीक्षा के भेद और प्रकार

जानें शास्त्राधारित गुरु दीक्षा के भेद और प्रकार

Manmohan Prajapati
Update: 2018-12-14 07:00 GMT
जानें शास्त्राधारित गुरु दीक्षा के भेद और प्रकार

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। किसी भी व्यक्ति के जीवन में गुरु का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। जन्म देने वाली माता और पालन करने वाले पिता के बाद सुसंस्कृत बनाने वाले गुरु का ही स्थान है। शास्त्रों में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति में आत्मशक्ति के रूप में पराशक्ति विद्यमान रहती है। जो जन्म-जन्मान्तरों से निष्क्रिय तथा सुषुप्त अवस्था में रहती है। जब सद्गुरू द्वारा दीक्षा संस्कार सम्पन्न किया जाता है तो शिष्य को अन्तर्निहित दिव्य-शक्ति का आभास हो जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं शास्त्राधारित गुरु दीक्षा के बारे में, आइए जानते हैं इसके भेद और प्रकार...

शास्त्राधारित गुरु दीक्षा के तीन प्रकार के भेद वर्णित है। 
1. ब्रह्म दीक्षा 2. शक्ति दीक्षा और 3. मंत्र दीक्षा।

1- ब्रह्म दीक्षा : – 
इसमें गुरु साधक को दिशा निर्देश व सहायता कर उसकी कुंडलिनी को प्रेरित कर जाग्रत करता है।
और ब्रह्म नाड़ी के माध्यम से परमशिव में आत्मसात करा देता है।
इसी दीक्षा को ब्रह्म दीक्षा या ब्राह्मी दीक्षा कहते है।

2- शक्ति दीक्षा : –
सामर्थ्यवान गुरु साधक की भक्ति श्रद्धा व सेवा से प्रसन्न होकर अपनी भावना व संकल्प के द्वारा द्रष्टि या स्पर्श से अपने ही समान कर देता है। इसे शक्ति दीक्षा, वर दीक्षा या कृपा दीक्षा भी कहते हैं।

3- मंत्र दीक्षा : – 
मंत्र के रूप में जो ज्ञान दीक्षा अथवा गुरु मंत्र प्राप्त होता है उसे मंत्र दीक्षा कहते हैं।
गुरु सर्वप्रथम साधक को मंत्र दीक्षा से ही दीक्षित करते हैं। इसके बाद शिष्य अर्थात् साधक की ग्राह्न क्षमता, योग्यता श्रद्धा भक्ति आदि के निर्णय के बाद ही ब्रह्म दीक्षा व शक्तिदीक्षा से दीक्षित करते हैं। इसलिए यह प्रायः देखा जाता है कि एक ही गुरु के कई शिष्य होते है परन्तु सभी एक स्तर के न होकर भिन्न स्तर के होते है। 

कई एक साधक मंत्र दीक्षा तक ही सीमित रह जाते हैं।
वैसे गुरु साधक को सर्वगुण संपन्न समझ कर जो कि एक साधक को होना चाहिए ।
बिना मंत्र दीक्षा दिए भी प्रसन्न होकर कृपा करके ब्रह्म दीक्षा तथा शक्ति दीक्षा दे सकते हैं।

इन दीक्षाओं के अलावा चार प्रकार की और दीक्षाओं का शास्त्र में उल्लेख मिलता है, आइए जानते हैं : –

1-कलावती दीक्षा : –
इसमें सिद्ध व् सामर्थ्यवान गुरु शक्तिपात की क्रिया द्वारा अपनी शक्ति को साधक में आत्मसात कर उसे शिव रूप प्रदान करता है।

2- वेधमयी दीक्षा : –
इसमें सिद्ध व सामर्थ्यवान गुरु साधक पर कृपा कर अपने शक्तिपात के द्वारा साधक के षट्चक्र का भेदन करता है।

3- पंचायतनी दीक्षा : – 
इसमें देवी, विष्णु, शिव सूर्य तथा गणेश इन पाँचों देवताओं में से किसी एक को प्रधान देव मानकर वेदी के मध्य में स्थापित करते है तथा शेष चारों देवताओं को चारों दिशा में स्थापित करते है।

फिर साधक के द्वारा पूजा एवं साधना करवा कर दीक्षा दी जाती है।

4- क्रम दीक्षा : – 
इसमें गुरु व साधक का तारतम्य बना रहता है। धीरे-धीरे गुरु भक्ति श्रद्धा एवं विश्वास बढ़ता जाता है।
 तत्पश्चात गुरु के द्वारा मन्त्रों व शास्त्रों तथा साधना पद्धतियों का ज्ञान विकसित होता जाता है।

 

 

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