गुरुनानक जयंती: योगी, दार्शनिक और समाज सुधारक थे नानक जी
गुरुनानक जयंती: योगी, दार्शनिक और समाज सुधारक थे नानक जी
- पिता मेहता कालू जी
- माता तृप्ता जी इसका अंतिम स्थान करतारपुर सिख धर्म के जनक
- पूर्वाधिकारी जन्म से रहे जिनके उत्तराधिकारी गुरु अंगद देव धार्मिक मान्यता सनातन
- हिन्दू धर्म (जन्म के समय) सिख धर्म की स्थापना इनकी जीवनसाथी बीबी सुलखनी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुरु नानक साहेब का जन्म कार्तिक पूर्णिमा पर हिन्दू शक संवत् 1527 में 15 अप्रैल सन 1469ईस्वी राय भोई की तलवंडी में हुआ, वर्तमान में ननकाना साहिब, पंजाब, जो अब पाकिस्तान में है। नानक साहेब का जन्म रावी नदी के तट पर स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। कई लोग इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल मानते हैं,लेकिन प्रचलन में कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है इस बार जो 23 नवंबर 2018 को है।
इनके पिता का नाम कल्याणचंद और माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था। गुरु नानक साहेब की मृत्यु 22 सितंबर 1539 करतारपुर स्मारक समाधि करतारपुर में हुई।
इन नामों से जाने हैं अनुयायी
नानक देव जी के अनुयायी या इनको मानने वाले इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक, नानक साहेब और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इनको नानक लामा भी कहा जाता है। गुरु नानक जी अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु आदि गुण संजोये हुए थे। अधिकतर लोगों का मानना है कि बाबा नानक एक सूफी संत थे और उनके सूफी कवि होने के प्रमाण भी पर लगभग सभी इतिहासकारों द्वारा समय-समय पर दिए जाते रहे हैं।
चमत्कारिक घटनाएं
बालक नानक बचपन से प्रखर बुद्धि के स्वामी थे। लड़कपन में आ कर ये सांसारिक विषयों में उदासीन रहने लगे थे। फिर शिक्षा में इनका मन नहीं लगा। 7-8 वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ दिया क्योंकि भगवतप्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक हार गए और सभी शिक्षक इनको सम्मान सहित घर छोड़ने आ गए। इसके बाद वे पूरा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बालपन के समय में इनके साथ कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर पूरे गाँव के लोग इन्हें कोई दिव्य व्यक्ति मानने लगे। बालपन के समय से ही नानक जी में श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के मुखिया रायबुलार प्रमुख रूप से थे।
नानक के मस्तिस्क पर नाग द्वारा छाया करने का मंजर देखकर रायबुलार नतमस्तक हो गये थे। नानक साहेब का विवाह बालपन मे ही लगभग सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक गाँव में रहनेवाले मूला की बेटी सुलक्खनी से हुआ था। 32 वर्ष की आयु में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष के बाद दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों बेटों के जन्म के बाद इस्वी सन-1507 में नानक देव जी अपने परिवार को अपने ससुर के पास छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चारों अनुयाई को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल गए।
ये सभी घूम-घूमकर उपदेश करने लगे। 1521 तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे कर लिए थे, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख-प्रमुख स्थान का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी भाषा में "उदासियाँ" कहा जाता है। नानक सर्वेश्वरवादी (सर्वेभवन्तु सुखिनः) थे। इन्होंने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतिओं का सदैव विरोध किया। उनके दर्शन गायन में सूफियों जैसी था। साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नज़र डाली है। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं उन्होंने नारी को सदा बड़प्पन दिया है।
जीवन के अंतिम दिनों में इनका प्रचार प्रसार बहुत बढ़ गया और इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। स्वयं ये अपने परिवारवर्ग के साथ रहने लगे और मानवता कि सेवा में समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर भी बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला भी उसमें बनवाई। और इसी स्थान पर आश्वन मॉस कृष्ण पक्ष 10, संवत् 1597 ईस्वी 22 सितंबर 1539 को इनका बैकुंठ हो गया।
उन्होंने मृत्यु से पहले अपने प्रिये शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए। नानक अच्छे सूफी कवि थे। उनकी भाषा "बहता पानी" थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समाहित किये गये हैं।
गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित 974 शब्द और 19 रागों में, गुरबाणी में सम्मिलित है-
1. सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरुनानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भंडार के देखरेख की नौकरी प्रारंभ की। वे यहाँ पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को "तेरा" शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
2. सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) यह गुरु नानकदेवजी का घर था, जहाँ उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
3. सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में ग़ड़बड़ी की आशंका में नानकदेवजी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानकदेवजी को छोड़ कर माफी ही नहीं माँगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
4. सुल्तानपुर लोधी जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, यहीं पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन वे वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतिनाम। गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
5. गुरुदासपुर अपनी यात्राओं के दौरान नानकदेव यहाँ रुके और नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद यहाँ पर हुआ। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। नानकदेवजी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है, ये बताया।
6. गुरुदासपुर जीवनभर धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद नानकदेवजी रावी नदी के किनारे पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के बाद सन् 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हो गए।