पितृदोष कैसे होता है? जानें उसके लक्षण और उपाय 

पितृदोष कैसे होता है? जानें उसके लक्षण और उपाय 

Manmohan Prajapati
Update: 2019-02-21 07:30 GMT
पितृदोष कैसे होता है? जानें उसके लक्षण और उपाय 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कथित रूप से आजकल के आधुनिक होते लोगों का अध्यात्म से रिश्ता कुछ टूटता सा जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को विज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं और ये सही भी है। क्योंकि ऐसा कर के वे रूड़िवादी हो चुकी मानसिकता को दूर करते जा रहे हैं किन्तु कभी-कभार कुछ घटनाएं और संयोग ऐसे होते हैं जिसका उत्तर चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता है। इन घटनाओं का सीधा सम्बन्ध ज्योतिष विद्या से जुड़ा है, जो अपने आप में एक विज्ञान होने के बाद भी कुछ युवाओं के लिए एक अंधविश्वास सा ही लगता है। खैर, आज हम आपको ज्योतिष विद्या में लिखित पितृ दोष के विषय में बताते हैं, जो किसी भी व्यक्ति की कुंडली को प्रभावित कर सकता या करता है।

जब कुल के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार विधानपूर्वक संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उसका मन अशांत रहा या उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो उनकी आत्मा घर और आने वाली पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत व्यक्ति की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए संकेत करती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में दिख जाता है।

जिस किसी को भी पितृदोष होता है उसके कारण जातक को बहुत से कष्ट उठाने पड़ते हैं, जिसमें हैं समय पर विवाह ना हो पाना, वैवाहिक जीवन में कलह, परीक्षा में बार-बार असफलता, नशे की लत पड़ जाना, नौकरी का ना लगना या बार-बार छूट जाना, गर्भपात होना या गर्भधारण की समस्या, परिवार में बच्चों की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि वाले बच्चे का जन्म होना,अत्याधिक क्रोधी होना।

ज्योतिष में सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति का जीवन पितृदोष के चक्र में फंस जाता है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि मृत्यु के बाद पुत्र द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म की मृतक को भवसागर से पार करता है। ऐसे में यह माना गया है कि जिस व्यक्ति का अपना पुत्र ना हो तो उसकी आत्मा कभी मुक्त नहीं हो पाती। इसी कारण से आज भी लोग पुत्र प्राप्ति की कामना रखते हैं।

वैसे पुत्र के ना होने पर आजकल पुत्री के हाथ से अंतिम संस्कार किया जाने लगा है, लेकिन यह शास्त्रों के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। इसलिए जिन लोगों का अंतिम संस्कार अपने पुत्र के हाथ से नहीं होता उनकी आत्मा को शांति नही मिलती है बल्कि भटकती रहती है और आगामी पीढ़ी के लोगों को भी पुत्र प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

पितृदोष के बहुत से ज्योतिषीय कारण भी हैं, जैसे जातक के लग्न और पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में बृहस्पति और राहु स्थित हो तो पितृदोष के कारण संतान होने में बाधा आती है। अष्टमेश या द्वादशेश का संबंध सूर्य या ब्रहस्पति से हो तो व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता है, इसके अलावा सूर्य, चंद्र और लग्नेश का राहु से संबंध होना भी पितृदोष दिखाता है। अगर व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु का संबंध पंचमेश के भाव या भावेश से हो तो पितृदोष के कारण संतान नहीं हो पाती।

यदि कोई व्यक्ति अपने हाथ से अपनी पिता की हत्या करता है, उन्हें दुख पहुंचाता या फिर अपने बुजुर्गों का अपमान करता है तो अगले जन्म में उसे पितृदोष का कष्ट झेलना पड़ता है। जिन लोगों को पितृदोष का सामना करना पड़ता है उनके विषय में ये माना जाता है कि उनके पूर्वज उनसे अत्यंत दुखी हैं।

पितृ दोष को शांत करने के उपाय तो हैं लेकिन आस्था और आध्यात्मिक झुकाव की कमी के कारण लोग अपने साथ चल रहे दुखों की जड़ तक नहीं पहुंच पाते। अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है और उसे अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो उसे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। वे भले ही अपने जीवन में कितना ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन उसे अश्विन मॉस की कृष्णपक्ष की अमावस्या को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

"बृहस्पतिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाने और फिर सात बार उसकी परिक्रमा करने से जातक को पितृदोष से राहत मिलती है। 

शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन जातक को घर में पूरे विधि-विधान से ‘सूर्ययंत्र’ स्थापित कर सूर्यदेव को प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल लेकर, उस जल में कोई लाल फूल, रोली और चावल मिलाकर, अर्घ देना चाहिए।

शुक्लपक्ष के प्रथम शनिवार को संध्या के समय पानी वाला नारियल अपने ऊपर से सात बार वारकर बहते जल में प्रवाहित कर दें और अपने पूर्वजों से छमा मांगकर उनसे आशीर्वाद बनाए रखने के लिए प्रार्थना करें।

अपने भोजन की थाली में से प्रतिदिन गाय और कुत्ते के लिए भोजन अवश्य निकालें और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेष रूप से गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो गुड़ खाकर ही निकलें। संभव हो तो घर में श्रीमदभागवत कथा का पाठ करवाएं।

हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। वर्तमान जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब अगले जन्म में भुगतना पड़ता है इसलिए अच्छा है कि अपने मन-वचन-कर्म से किसी को भी दुःख ना पहुचाएं।

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