इतने चूहे कि चलना मुश्किल, इस मंदिर में मिलता है जूठा प्रसाद
इतने चूहे कि चलना मुश्किल, इस मंदिर में मिलता है जूठा प्रसाद
डिजिटल डेस्क, बीकानेर। भारत में ऐसे मंदिरों की कमी नही है, जो खूबसूरत, अद्भुत एवं विचित्र हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक विचित्र स्थान की ओर लेकर चलते हैं। जहां हजारों की संख्या में चूहे 24 घंटे मौजूद रहते हैं। पूजा में उनका वही स्थान है जो देवी का...
यह है राजस्थान के ऐतिहासिक नगर बीकानेर से लगभग 30 किलो मीटर दूर देशनोक में स्थित करणी माता का मंदिर जिसे चूहों वाली माता, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि इस मंदिर में करीब 20,000 चूहे रहते हैं और मंदिर में आने वाले भक्तों को चूहों का झूठा प्रसाद ही दिया जाता है।
मंदिर को लेकर कहा जाता है कि कुछ दशक पूर्व जब भारत में प्लेग फैला था तब भी इस मंदिर में भक्तों का मेला लगा रहता था और वे चूहों का जूठा प्रसाद ही खाते थे। चूहों के जूठे प्रसाद की वजह से अब तक किसी भी व्यक्ति के बीमार होने की खबर नही आई है और ना ही मंदिर में किसी तरह की बीमारी फैली।
काले सफेद चूहे
इस मंदिर में करीब बीस हज़ार काले चूहों (जिन्हें काबा नाम से जाना है) के साथ कुछ सफ़ेद चूहे भी रहते हैं। इन चूहों को ज्यादा पवित्र माना जाता हैं। मान्यता है कि यदि आपको सफ़ेद चूहा दिखाई दे गया तो आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। वहीं यहां चूहों की संख्या इतनी अधिक है कि आप पैर उठाकर नहीं चल सकते। आपको अपने पैरों को घसीटना होगा। वहीं सुबह-शाम की आरती में भी ये चूहे बिलों से बाहर आ जाते हैं।
साक्षात अवतार
करणी माता को मां जगदंबा का अवतार माना जाता है। जिनका असली नाम रिघुबाई था। इनकी शादी साठिका गांव के किपोजी चारण से हुई थी लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही उनका मन सांसारिक जीवन से ऊब गया इसलिए उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवाकर खुद को माता की भक्ति और लोगों की सेवा में लगा दिया।
151 वर्ष की आयु
करनी माता 151 वर्ष जिन्दा रहकर 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लिन हुई थी। वर्तमान में जहां यह मंदिर स्थित है वहां पर एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा किया करती थी। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है।
राजघराने की कुलदेवी
करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी है। कहते है की उनके ही आशीर्वाद से बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई थी। करणी माता के वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में करवाया था।