प्रतिवर्ष सालबेग की मजार पर आकर रुक जाता है भगवान जगन्नाथ जी का रथ, जानिए क्यों?

प्रतिवर्ष सालबेग की मजार पर आकर रुक जाता है भगवान जगन्नाथ जी का रथ, जानिए क्यों?

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-14 12:56 GMT
प्रतिवर्ष सालबेग की मजार पर आकर रुक जाता है भगवान जगन्नाथ जी का रथ, जानिए क्यों?

डिजिटल डेस्क, पुरी। हर साल उड़ीसा के पुरी में आयोजित होने वाली भगवान जगन्नाथजी की रथ यात्रा के दर्शन करने देश विदेश से लाखों-करोड़ों भक्त एकत्रित होते हैं। इस आयोजन में शामिल होने वाले भक्त हमेशा एक बात से जरूर हैरान रहते हैं, वो बात यह है कि हर साल भगवान जगन्नाथ जी का रथ अपनी यात्रा के दौरान थोड़ी देर के लिए एक मुस्लिम की मजार पर रोका जाता है। यह मंजर देख हर एक भक्त इस रहस्य के पीछे की सच्चाई जानने को उत्सुक रहता है। बताया जाता है कि जिस मुस्लिम की यह मजार है उसका नाम सालबेग था औऱ वह भगवान जगन्नाथजी का अनन्य भक्त था।

 


मंदिर के पुजारी और शहरवासी बताते हैं कि सालबेग यहीं का रहने वाला था। उसकी मां हिंदू थी और पिता मुस्लिम थे। यह उस समय की घटना है जब भारत पर मुगलों का शासन था। सालबेग भी मुगल सेना में एक सैनिक के पद पर था। बताते हैं कि सालबेग प्रारंभ से ही मुस्लिम धर्म को मानता था, मगर उसके जीवन में घटी एक घटना ने उसे भगवान जगन्नाथ का भक्त बना दिया।

एक बार सालबेग के माथे पर गंभीर चोट लग गई थी। इस चोट के कारण एक बड़ा घाव हो गया, जिसका इलाज किसी भी हकीम और वैद्य के पास नहीं मिल रहा था। सालबेग ने हर जगह दिखा लिया था, मगर उसका जख्म ठीक नहीं हो रहा था। इस गंभीर घाव के कारण ही उसे मुगल सेना से भी निकाल दिया गया। परेशान और हताश सालबेग दुखी रहने लगा। तब उसकी माता ने उसे भगवान जगन्नाथजी की भक्ति करने की सलाह दी। सालबेग ने भी अपनी माता के बताए अनुसार भगवान जगन्नाथ जी की अनन्य भक्ति की।

 


सालबेग भगवान जगन्नाथजी की भक्ति में इतना खो गया था कि वो दिन-रात पूजा-अर्चना और भक्ति करने लगा। इसी भक्ति और पूजा-अर्चना के चलते सालबेग को मानसिक शांति और जीवन जीने की शक्ति मिलने लगी।

 


सपने में भगवान ने दिए दर्शन
मुस्लिम होने के कारण सालबेग को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। ऐसे में वह मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की भक्ति करने लगता। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ जी उसे सपने में आकर दर्शन दिया करते। भगवान उसे सपने में आकर घाव पर लगाने के लिए भभूत देते और सालबेग सपने में ही उस भभूत को अपने माथे पर लगा लेता। उसके लिए हैरान करने वाली बात यह थी कि उसके माथे का घाव सचमुच में ठीक हो गया था।


...इसलिए आज भी मजार पर रुकती है रथ यात्रा
मुस्लिम होने के कारण सालबेग कभी भी भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पहले सालबेग ने कहा था, "यदि मेरी भक्ति में सच्चाई है तो मेरे प्रभु मेरी मजार पर जरूर आएंगे।" मृत्यु के बाद सालबेग की मजार जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर के रास्ते में बनाई गई थी। इसके कुछ महीने बाद जब जगन्नाथजी की रथयात्रा निकली तो सालबेग की मजार के पास आकर भगवान का रथ रुक गया और लाख कोशिशों के बाद भी रथ इंचभर आगे नहीं बढ़ा। तभी पुरोहितों और राजा ने सालबेग की सारी सच्चाई जानी और भक्त सालबेग के नाम के जयकारे लगाए। जयकारे लगाने के बाद रथ चलने लगा। बस तभी से हर साल मौसी के घर जाते समय जगन्नाथजी का रथ सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रोका जाता है।

 

 

भक्त सालबेग के बनाए भजन, आज भी लोगों को याद हैं
भक्त सालबेग सारा जीवन मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन की आस लगाए रहता था। वह रोज भगवान की जय-जयकार करता हुआ और भावों से भरा हुआ तुरंत जगन्नाथजी के मंदिर की तरफ उनके दर्शनों के लिए दौड़ पड़ता। मगर मुस्लिम होने के कारण उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। ऐसे में वह मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान की भक्ति करने लगता है। प्रभु का नाम जपता है और उनके भजन लिखता है। धीरे-धीरे उसके भजन अन्य भक्तों की जुबान पर भी चढ़ने लगते। लोग बताते हैं कि सालबेग के बनाए भगवान के भजन लोगों को आज भी याद हैं।

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