जानें इस व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

जितिया व्रत 2022 जानें इस व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Manmohan Prajapati
Update: 2022-09-17 11:51 GMT
जानें इस व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत होता है, जो इस साल 18 सितंबर 2022 यानी रविवार को है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया या जीमूत वाहन का व्रत आदि नामों से जाना जाता है। जितिया व्रत महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत विशेष तौर पर संतान के लिए किया जाता है।इस व्रत को तीन दिन तक किया जाता है। इस व्रत में तीन दिन तक उपवास किया जाता है। 

महिलाएं व्रत के दूसरे दिन और पूरी रात में जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। पहले दिन महिलाएं स्नान करने के बाद भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं। व्रत का दूसरा दिन अष्टमी को पड़ता है और यही मुख्य दिन होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत के तीसरे दिन पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है। आइए जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि के बारे में...

शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथी प्रारम्भ: 17 सितंबर, दोपहर 2 बजकर 14 मिनट से 
अष्टमी तिथी समापन: 18 सितंबर, शाम 4 बजकर 32 मिनट तक 

पूजा विधि 
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और फिर भोजन ग्रहण करें, फिर पूरा दिन कुछ भी ना खाएं।
दूसरे दिन सुबह स्नान करके पूजा कर पूरे दिन भर निर्जला व्रत रखें। 
तीसरे दिन सुबह स्नान करके सूर्य को अर्घ दें व जैसे छठ पूजा में व्रत पारण के पहले पूजा की जाती है वैसे ही पूजन करके पारण करें, जिसके बाद भोजन किया जाता है। इसके बाद व्रत के तीसरे दिन मरुत की रोटी, झोर भात व नोनी का साग खाएं। 
व्रत वाले दिन प्रदोष काल में महिलाएं जीमूत वाहन का पूजन करें और फिर जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनें।
कथा सुनना सबसे ज्यादा जरूरी है इसलिए कथा को ध्यान लगा कर सुनें।   

महत्व
इस व्रत का संबंध महाभारत काल से भी है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। 

अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।  

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