जानिए मल मास में कैसे पायें पुण्य और कैसे करें पापों का प्रायश्चित 

जानिए मल मास में कैसे पायें पुण्य और कैसे करें पापों का प्रायश्चित 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-05-16 10:46 GMT
जानिए मल मास में कैसे पायें पुण्य और कैसे करें पापों का प्रायश्चित 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। जाने अनजाने में हमसे कभी ना कभी कुछ पाप हो जाते हैं, जिनका प्रायश्चित मल मास में किया जा सकता है। मानव जाति पाप और पुण्य के फेर में उलझी हुई है। मनुष्य को प्रकृति की एकमात्र ऐसी रचना माना गया है जो ना सिर्फ सोच-विचार कर सकती है बल्कि अपनी विवेकशीलता की वजह से अपने पूर्वजन्म के पापों का प्रायश्चित भी कर सकती है, ताकि उसकी आत्मा को आने वाले जन्मों में कष्ट ना सहन करना पड़ें। 

इसी कारण यह मान्यता बहुत प्रबल है कि सौभाग्यशाली आत्माओं को मनुष्य शरीर में जन्म लेने का अवसर प्राप्त होता है। अधिकांश मनुष्य पूरी कोशिश करते हैं कि इस जन्म में वह कोई ऐसा कृत्य ना करें जिसे पाप की श्रेणी में डाला जाए। लेकिन कभी-कभी हम ऐसा कुछ कर बैठते हैं जो हमारे लिए ना सही लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से पाप माना जाता है। कई बार ये सब हमारी जानकारी में होता है तो कई बार हम अज्ञानता में ही पाप कर बैठते हैं।

अगर आप अपने द्वारा अज्ञानता में किए गए पापों का प्रायश्चित पाना चाहते हैं तो आपको नियमित रूप से अधिक मास में पांच कार्य अवश्य करने चाहिए। जो इस प्रकार हैं।
 


ब्रह्म यज्ञ 

वेद, पुराण और अन्य धार्मिक दस्तावेजों का नियमित पाठ, गायत्री मंत्र का जाप ब्रह्मयज्ञ कहलाता है। अनजाने में किए गए पापों से बचने के लिए मनुष्य को ब्रह्म यज्ञ करना चाहिए। 
जड़ और प्राणी जगत से बढ़कर है मनुष्य। मनुष्य से बढ़कर हैं पितर अर्थात माता-पिता और आचार्य। पितरों से बढ़कर हैं देव अर्थात प्रकृति की 5 शक्तियां और देव से बढ़कर हैं ईश्वर और हमारे ऋषिगण। ईश्वर अर्थात ब्रह्म। यह ब्रह्म यज्ञ सम्पन्न होता है नित्य संध्या वंदन, स्वाध्याय तथा वेदपाठ करने से। इसके करने से ऋषियों का ऋण अर्थात ‘ऋषि ऋण’ चुकाया जा सकता है। 
 


देव यज्ञ 

  • देवी-देवताओं को प्रसन्न करने हेतु, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु प्रति दिन हवन करें।  

 

  • देव यज्ञ जो सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म से सम्पन्न होता है। इसके लिए वेदी में अग्रि जलाकर होम किया जाता है, यही अग्रिहोत्र यज्ञ है। यह भी संधिकाल में गायत्री छंद के साथ किया जाता हैं। 
     


पितृ यज्ञ 

  • पितरों की शांति हेतु नियमित रूप से श्राद्ध कर्म करना, ब्राह्मणों या सुपात्र को भोजन करवाना, पितृयज्ञ कहलाता है।

 

  • सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता-पिता व आचार्य तृप्त हों वह तर्पण है। 

 

  • वेदानुसार यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता-पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है। 
     


भूत यज्ञ 

  • गाय, कुत्ता, कौआ आदि जीव-जंतुओं को भोजन और जल देना भूतयज्ञ कहा जाता है। 

 

  • पंच महाभूत से ही मानव शरीर है। सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूत यज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है। 
     


मनुष्य यज्ञ 

  • आपके घर में जो भी मेहमान आए या दरवाजे पर जो भी मदद के लिए आए उसे कभी खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए। उनका पूर्ण आदर-सत्कार, उनकी मदद करना मनुष्य यज्ञ कहलाता है।
     
  • अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही मनुष्य यज्ञ या अतिथि यज्ञ कहलाता है। 

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