Kaal Bhairav Jayanti 2020: आज है काल भैरव जयंती, जानें पूजा विधि

Kaal Bhairav Jayanti 2020: आज है काल भैरव जयंती, जानें पूजा विधि

Manmohan Prajapati
Update: 2020-12-06 09:47 GMT
Kaal Bhairav Jayanti 2020: आज है काल भैरव जयंती, जानें पूजा विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष अगहन (मार्गशीर्ष) माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस बार काल भैरव जयंती आज 07 नवंबर यानी सोमवार को है। काल भैरव जयंती हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन भोलेनाथ के रौद्र रूप काल भैरव का अवतरण हुआ था।  इस तिथि को भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। 

माना जाता है कि जो जातक यह व्रत रखता है और उनकी पूजा, साधना या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। इस दिन पूजन अर्चन करने से भगवान काल भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं पूजा विधि के बारे में...

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श्याम रंग
भैरव जी का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं। उनका वाहन श्वान यानी कुत्ता है। भैरव श्मशानवासी हैं तथा ये भूत-प्रेत, योगिनियों के स्वामी हैं। भक्तों पर कृपावान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। भैरव की प्रसन्नता के लिए श्री बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ करना शुभ होता है। श्री काल भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।

पूजा विधि
काल भैरव को शिवजी का अवतार माना जाता है जो इनकी विधिवत पूजन करता है उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। यानी काल भैरव जयंती के दिन भगवान शिव की पूजा करने से भी भगवान भैरव की कृपा प्राप्त होती है। कालाष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से "ॐ नम: शिवाय" लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाने से भी भगवान भैरव प्रसन्न होंगे और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

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उन्हें तंत्र का देवता माना जाता है। इसके चलते भूत, प्रेत और उपरी बाधा जैसी समस्या के लिए काल भैरव का पूजन किया जाता है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भी उनकी विशेष कृषा प्राप्त होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति चौकी पर गंगाजल छिड़ककर स्थापित करें। इसके बाद काल भैरव को काले, तिल, उड़द और सरसो का तेल अर्पित करे। अंत में श्वान का पूजन भी किया जाता है। 

भैरव मंत्र-
"ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं"।

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