ये है 'करवा चौथ' व्रत की पूजन विधि, इस शुभ मुहूर्त में देखें 'चांद'

ये है 'करवा चौथ' व्रत की पूजन विधि, इस शुभ मुहूर्त में देखें 'चांद'

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-06 03:33 GMT
ये है 'करवा चौथ' व्रत की पूजन विधि, इस शुभ मुहूर्त में देखें 'चांद'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ व्रत आज रविवार 8 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। रविवार को तृतीया तिथि 4 बजकर 58 मिनट तक है। इसके बाद चतुर्थी तिथि का प्रारंभ होगा। करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए सुबह से उपवास करती हैं। शाम होते ही चांद निकलने का इंतजार और चांद का दीदार करते हुए उनकी पूजा अर्चना करती हैं। पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला यह व्रत चंद्रोदय व्यापिनी तिथि में करना चाहिए। इस तिथि का समापन 9 अक्टूबर दो 2.16 मिनट पर होगा। इस बार चंद्रोदय बीते सालों की तुलना में जल्दी उदित होगा। ज्याेतिष के अनुसार इस बार करवा चौथ का चांद शाम को 8 बजकर 10 मिनट पर निकलेगा वहीं कुछ स्थानों पर चांद के दीदार 8 बजकर 40 मिनट पर होने की संभावना है।

छलनी,चांद और करवा का महत्व

इस व्रत में विवाहित महिलाएं पूरा श्रंगार कर, आभूषण आदि पहन कर शिव-पार्वती, गणेश, मंगल ग्रह के स्वामी देव सेनापति कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करती हैं। इस व्रत में व्रतधारी महिलाएं पकवान से भरा करवा, मिट्टी के बने बर्तन आदि के साथ के पूजन करती हैं। करवा चौथ में छलनी,चांद और करवा का विशेष महत्व होता है। 

पूजन विधि

  • बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें, इसके बाद इन देवताओं की पूजा करें। 
  • रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं और 13 बिंदियां रखें। करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। 
  • स्वयं भी बिंदी लगाएं और गेहूं के 13 दाने दाएं हाथ में लेकर कथा सुनें। 
  • चंद्रोदय के बाद चंद्रमा का पूजन करें व पानी में गेहूं के दाने डालकर उसे अर्घ्य दें। 
  • इसके पश्चात छलनी से पति के मुख का दर्शन करें और उन्हीं के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत खोलें। 
  • सास को एक लोटा, वस्त्र और विशेष करवा उन्हें भेंट कर आशीर्वाद लें। 
  • इसके पश्चात ब्राह्मण सुहागिन स्त्रियों और पति के माता-पिता को भोजन कराएं। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।

12 से 16 साल 

कुछ स्थानों पर व्रत में करवा पूजन का विधान अलग भी देखने मिलता है। हालांकि चंद्रदोदय के बाद अर्घ्य और पति के हाथों के हाथों जल ग्रहण कर व्रत खोलने का नियम सभी जगह समान ही है। यह व्रत कम से कम 12 या 16 साल तक करना चाहिए। इसके बाद विधि-विधान से उद्यापन भी किया जा सकता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में द्रोपदी ने अर्जुन के लिए यह व्रत किया था। जिसके बाद से ही इसकी परंपरा प्रारंभ हुई।

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