जानिए स्वास्तिक के चमत्कारिक लाभ

जानिए स्वास्तिक के चमत्कारिक लाभ

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-10 06:06 GMT
जानिए स्वास्तिक के चमत्कारिक लाभ

 

डिजिटल डेस्क ।  स्वास्तिक ब्रह्मज्ञान के गूढ़ रहस्यों को संजोए है, इसी के मुताबिक इसकी विलक्षणता है । साधारण से प्रतीत होने वाले स्वास्तिक पर ध्यान केन्द्रित किया जाये तो यह मनुष्य को सबसे ऊंची स्थिति के पहुंचा सकता है । इसका महात्म्य वर्णनातीत है।  स्वास्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है।  स्वास्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। "सु" का अर्थ अच्छा, "अस" का अर्थ "सत्ता" या "अस्तित्व" और "क" का अर्थ "कर्त्ता" या करने वाले से है। इस प्रकार " स्वास्तिक" शब्द का अर्थ हुआ "अच्छा" या "मंगल" करने वाला।   "अमरकोश" में भी " स्वास्तिक" का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। 

                 

अमरकोश के शब्द हैं - 

" स्वास्तिक, सर्वतोऋद्ध" अर्थात् "सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो। इस प्रकार " स्वास्तिक" शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना निहित है। 

 

" स्वास्तिक" शब्द की निरुक्ति है - 

 

" स्वास्तिक क्षेम कायति, इति स्वास्तिकः" अर्थात् "कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वास्तिक है। स्वास्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वास्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। 

प्रथम स्वास्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे " स्वास्तिक" कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे "वामावर्त स्वास्तिक" कहते हैं। 

 

भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही "वामावर्त स्वास्तिक" अंकित था। ऋग्वेद की ऋचा में स्वास्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। 

 

 

अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वास्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वास्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। 

अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वास्तिक तथा बही-खाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है।

 

 

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