जानिए स्कंद षष्ठी का महत्त्व, व्रत कथा एवं पूजा विधि 

जानिए स्कंद षष्ठी का महत्त्व, व्रत कथा एवं पूजा विधि 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-06-12 11:24 GMT
जानिए स्कंद षष्ठी का महत्त्व, व्रत कथा एवं पूजा विधि 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का बहुत महत्व है। इस बार ये तिथि 19 जून 2018 को पड़ रही है। दक्षिण भारत में लोग इस तिथि को एक उत्सव के रूप में बहुत ही श्रध्दा भाव से मनाते हैं। इस दिन भगवान शिव के पुत्र, कार्तिकेय की पूजा की जाती है। कहते हैं इस दिन संसार में हो रहे कुकर्मों को समाप्त करने के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ था। स्कन्द, मुरुगन, सुब्रमण्यम यह सभी नाम भगवान कार्तिकेय के हैं। बताया जाता हैं कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति प्राप्त हुई थी। इस दिन यह भी बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत के मृत शिशु के प्राण लौट आए थे।

 


इस तिथि से जुड़ी प्रसिद्ध कथा  

राक्षस ताड़कासुर का अत्याचार हर जगह फैल गया था जिसके कारण सभी देवताओं को हार का सामना करना पड़ रहा था। एक दिन सभी देवता मिलकर ब्रह्म देव के पास पहुंचे और उनसे अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। ब्रह्म देव ने उन्हें बताया की ताड़कासुर का वध भगवान शिव के पुत्र के अलावा कोई नहीं कर सकता लेकिन माता सती के अंत के बाद शिवजी साधना में लीन हो गए थे। सभी देवता भगवान शिव के पास गुहार लेकर गए और शिवजी ने उनकी बात सुनकर पार्वती से विवाह किया। शुभ मुहूर्त में विवाह होने के बाद कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने ताड़कासुर का वध किया। 

 


इस दिन कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने का भी विशेष महत्त्व है। इस दिन दान आदि कार्य करने से विशेष लाभ मिलता है। स्कंद देव की स्थापना करके अखंड दीपक जलाए जाते हैं। कार्तिक भगवान को स्नान करवाकर, नए वस्त्र पहनाकर, पूजा की जाती है। इस दिन भगवान को भोग लगाया जाता है। स्कंद षष्ठी पूजन में तामसिक भोजन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य आवश्यक होता है। कहते हैं इस दिन भगवान कार्तिकेय पर दही में सिंदूर मिलाकर चढ़ाने से व्यवसाय पर आ रहे व्यावसायिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं और आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। इस दिन पूरे मन से भगवान कार्तिकेय का पूजन करने से जीवन के अनेक प्रकार के कष्ट दूर होते हैं।

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