कोकिला व्रत 2020: इस व्रत को करने से मिलता है मनचाहा जीवनसाथी

कोकिला व्रत 2020: इस व्रत को करने से मिलता है मनचाहा जीवनसाथी

Manmohan Prajapati
Update: 2020-07-03 05:22 GMT
कोकिला व्रत 2020: इस व्रत को करने से मिलता है मनचाहा जीवनसाथी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ मास अपने अंतिम चरण में है और इसका समापन पूर्णिमा यानि कि आज शनिवार 04 जुलाई, शनिवार यानि कि आज है। यह दिन बेहद खास है, क्योंकि इस दिन कोकिला व्रत आरंभ होता है। शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से शुरू होने वाला यह व्रत सावन मास की पूर्णिमा तक रखा जाता है। इस व्रत में आदिशक्ति मां भगवती की कोयल रूप में पूजा की जाती है। 

शास्त्रों के अनुसार यह व्रत पहली बार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए किया था। पार्वती रूप में जन्म लेने से पहले पार्वती कोयल बनकर दस हजार सालों तक नंदन वन में भटकती रही। शाप मुक्त होने के बाद पार्वती ने कोयल की पूजा की इससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और पत्नी के रूप में पार्वती को स्वीकार किया। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व, नियम और कथा...

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कोकिला व्रत का महत्व
माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। यह व्रत दांपत्य जीवन को खुशहाल होने का वरदान प्रदान करता है। इस व्रत को रखने वाली महिलाओं को सकारत्रय यानी सुत, सौभाग्य और संपदा की प्राप्ति होती है। वहीं अविवाहितों को इस व्रत के फल के रूप में मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। शादी में आ रही किसी भी प्रकार की समस्या का निदान भी इस व्रत का पालन करने से होता है।

व्रत नियम
- इस व्रत को रखने वाली स्त्रियों के लिए जड़ी-बूटियों से स्नान का नियम है। 
- पहले आठ दिन तक आंवले का लेप लगाकर स्नान करें। 
- इसके बाद आठ दिनों तक दस औषधियों कूट, जटमासी, कच्ची और सूखी हल्दी, मुरा, शिलाजित, चंदन, वच, चम्पक एवं नागरमोथा पानी में मिलाकर स्नान करने का विधान है।
- अगले आठ दिनों तक पिसी हुई वच को जल में मिलाकर स्नान करें।
- अंतिम छह दिनों में तिल, आंवला और सर्वऔषधि से स्नान करें।
- प्रत्येक दिन स्नान के बाद कोयल की पूजा करें।
- अंतिम दिन कोयल को सजाकर उसकी पूजा करें। 
- पूजा करने के बाद ब्राह्मण अथवा सास-श्वसुर को कोयल दान कर दें। 

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व्रत कथा
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री सती (पार्वती) से हुआ था, लेकिन वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। यह जानते हुए भी जब सती ने शिव से विवाह किया तो इससे प्रजापति सती से नाराज हो हुए। इसके बाद एक बार दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन अपने जमाता भगवान भोले शंकर को आमंत्रित नहीं किया।

जब सती को यह बात पता चली तो उनके मन में पिता के यज्ञ को देखने की इच्छा हुई। उन्होंने भगवान शंकर से मायके जाने की आज्ञा मांगी। शंकरजी ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण के वहां जाना उचित नहीं है, किंतु वे नहीं मानीं और हठ करके मायके चली गईं। 
जेकिन जब वे अपने पिता के घर पहुंची तो प्रजापति दक्ष ने सती का बहुत अपमान किया। सती अपमान सहन नहीं कर सकी और यज्ञ कुण्ड में कूद कर जल गयी। 

उधर जब शंकरजी को यह बात पता चली तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और हठ करके प्रजापति के यज्ञ में शामिल होने के कारण सती को कोकिला पक्षी बनाकर दस हजार वर्षों तक नंदन बन में रहने का श्राप दे दिया। इसके बाद पार्वती का जन्म पाकर उन्होंने आषाढ़ में नियमित एक मास तक यह व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव उन्हें पुनः पति के रूप में प्राप्त हुए।
 

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