साक्षात विराजे सूर्यदेव, लेकिन यहां कभी नहीं होती पूजा

साक्षात विराजे सूर्यदेव, लेकिन यहां कभी नहीं होती पूजा

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-08 04:42 GMT
साक्षात विराजे सूर्यदेव, लेकिन यहां कभी नहीं होती पूजा

डिजिटल डेस्क, ओडिशा। यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां की शैली और अद्भुत कलाकृति किसी को भी मोहित कर सकती है। सूर्यदेव की आराधना के लिए ये स्थान सर्वाधिक उर्पयुक्त माना गया है, किंतु इस मंदिर में वास्तु दोष भी है। ऐसी मान्यता है कि यहां सूर्यदेव की जो मूर्ति स्थापित है उसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने भगवान सूर्य के शरीर के हिस्से से ही बनाया था और भगवान कृष्ण के पुत्र सांब ने यहां स्थापित किया। यह ओडिशा के पुरी जिले में स्थित है। 

12 सालों तक कठिन तपस्या

कहा जाता है कि सांब के कोढ़ रोग से पीड़ित थे उन्होंने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के किनारे संगम पर कोणार्क में 12 सालों तक कठिन तपस्या कर सूर्यदेव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव सभी रोगों का नाश करने वाले हैं अतः उन्होंने सांब के दुखों का हरण कर लिया। इसके पश्चात सांब ने यहां भगवान सूर्यदेव का मंदिर बनाने का निर्णय किया। एक दिन वे चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे तभी उन्हें सूर्यदेव की मूर्ति मिली और उसके महत्व के बारे में पता चला। उन्होंने उस मूर्ति को मित्रवन के मंदिर में स्थापित कर दिया। तब से यहां सूर्यदेव के पूजन का महत्व बढ़ गया। इसे स्थानीय लोग बिरंची-नारायण के नाम से भी जानते हैं।

चमत्कारी पत्थर

मंदिर के संबंध में कई तरह की लोककथाएं प्रचलित हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर में पहले एक चमत्कारी पत्थर लगा हुआ था जो समंदर से गुजरने वाले जहाजों को अपनी ओर खींच लेता था। इसलिए विदेशी शासक इसे निकालकर ले गए। 

यह भी कहा जाता है कि सूर्य मंदिर में भगवान सूर्यदेव का रथ वास्तु के अनुसार उर्पयुक्त दिशा में नही है। इसे सूर्य मंदिर का घर भी कहा जाता है। हालांकि यहां कभी पूजा नही हुई। कहा जाता है कि यहां के वास्तुकार के पुत्र ने मंदिर में अात्महत्या कर ली थी। जिसके बाद यहां पूजा बंद हाे गई। यह जगन्नाथ मंदिर से 21 किलोमीटर दूर है। यहां सूर्य देवता की तीन मूर्तियां हैं जहां ये तीन रुप में दिखाई देते हैं। मंदिर के बाहर कामुक प्रतिमाएं भी हैं। स्थानीय लोग ये भी कहते हैं कि यहां शाम होने के बाद नर्तकियों की पायलों की आवाज भी सुनाई देती है। 

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