अंतिम और नौवें दिन होती है सिद्धिदात्री देवी की पूजा

अंतिम और नौवें दिन होती है सिद्धिदात्री देवी की पूजा

Bhaskar Hindi
Update: 2018-10-17 07:42 GMT
अंतिम और नौवें दिन होती है सिद्धिदात्री देवी की पूजा

डिजिटल डेस्क । नवरात्रि में अंतिम और नवां दिन माता सिद्धिदात्री का होता है। जो इस बार 18 अक्टूबर 2018 को है। माता दुर्गा जी की नौवीं महाशक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। माता सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। नवरात्रि के अंतिम दिन पुराणिकशास्त्र की विधि-विधान और माता की पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को इस दिन सर्व सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इस सृष्टि में देवी सिद्धिदात्री की साधना करने वाले साधक के लिये कुछ भी बिरला नहीं रह जाता है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य साधक में आ जाता है।

 

 

स्तुति श्लोक:-

 

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ! 

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी !!

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार 

 

1-अणिमा, 2-महिमा, 3-गरिमा, 4-लघिमा, 5-प्राप्ति, 6-प्राकाम्य, 7-ईशित्व और 8-वशित्व ये अष्टसिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में इनकी संख्या अठारह बताई गई है। 

 

माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ होती हैं। देवीपुराण के अनुसार शिव जी ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। 
माता की अनुकम्पा से ही भगवान शिव जी का आधा शरीर देवी का हो गया। जिस कारण शिवजी समस्त लोकों में "अर्द्धनारीश्वर" के नाम से प्रसिद्ध हो गए हैं। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं और माता सिंह की सवारी करती है। ये कमल पुष्प पर भी विराजमान होती हैं। इनके सीधे हाथ के नीचले वाले हाथ में कमलपुष्प होता है।

 

हर साधक का ये कर्तव्य है कि वो देवी माता सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करता रहे। माता की आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से दुख रूपी संसार से निर्लिप्त रहकर भी समस्त सुख को भोगता हुआ वो मोक्ष गति को प्राप्त कर लेता है। दुर्गा के नौं रूप में माता सिद्धिदात्री का अंतिम नवा रूप हैं। जब सभी आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय और पौराणिक विधि-विधान के अनुसार करते हुए साधक दुर्गा पूजा के नौवें दिन सिद्धिदात्री की उपासना में प्रविष्ट होते हैं और सिद्धिदात्री माता की उपासना पूर्ण कर लेने के पश्चात भक्तों और साधकों की लौकिक-पारलौकिक सभी प्रकार की मनोकामनाओं की प्राप्ति होती है। 

माता सिद्धिदात्री के कृपापात्र भक्त एवं साधक के भीतर भी कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वो पूर्ण करना चाहे। वो सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और कामनाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माता भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनकी कृपा रस का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोगशून्य में चला जाता है। 

माता भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को प्राप्त करने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। माता के श्री चरणों का ये सान्निध्य प्राप्त करने के लिए साधक को निरंतर नियमित रहकर उनकी उपासना करने का नियम है। 

ऐसा भी माना गया है कि देवी माता का स्मरण, ध्यान, पूजा, साधक को इस संसार की योग्यता का बोध कराते हुए सत्य और अखंडता के परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है और ये विश्वास किया जाता है कि माता की आराधना से साधक को सभी ग्यारह निधियां प्राप्त होती हैं।

1-अणिमा, 2- लधिमा, 3- प्राप्ति, 4- प्राकाम्य, 5- महिमा, 6- ईशित्व, 7- सर्वकामावसायिता, 8- दूर श्रवण, 9- परकामा प्रवेश, 10- वाकसिद्ध, 11- अमरत्व, भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों एवं नव निधियों की प्राप्ति होती है। 

अगर कोई इतना कठिन तप या जप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माता की कृपा का पात्र बन सकता है। माता की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। माता जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।

 

स्तुति श्लोक :-

या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

 

श्लोक का अर्थ

हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माता सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। 
मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माता मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।

 

नवरात्रि में माता सिद्धिदात्री की पूजा-साधना में आप हलके बैंगनी रंग के वस्त्रों का उपयोग करें और ये दिन चंद्रमा से सम्बंधित पूजा के लिए सर्वोत्तम होता है। नवरात्रि की नौवें दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दें। इससे साधक को अकाल मृत्यु भय से मुक्ति प्राप्त होती है और यदा-कदा अकस्मात होने वाली घटना-दुर्घटना से भी बचाव हो जाता है|

 

ध्यान श्लोक :-

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

 

माता का स्तोत्र पाठ:-

कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो। 
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता। 
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा। 
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता। 
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी। 
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी। 
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

 

माता का रक्षाकवच पाठ:-

ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥

नवरात्रि के दिनों में किसी भी प्रकार के अनुष्ठान और पूजा का महत्व और परिणाम कई गुना अधिक बढ़ जाते है। 
 

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