'श्रीकृष्ण' की बांसुरी में छिपा है बड़ा रहस्य, उन्हें प्रिय हैं ये 6 चीजें

'श्रीकृष्ण' की बांसुरी में छिपा है बड़ा रहस्य, उन्हें प्रिय हैं ये 6 चीजें

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-12 09:43 GMT
'श्रीकृष्ण' की बांसुरी में छिपा है बड़ा रहस्य, उन्हें प्रिय हैं ये 6 चीजें

डिजिटल डेस्क, भोपाल। इस वर्ष तीन दिनों तक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का योग है। कन्हैया ने भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात को जन्म लिया था। वैसे तो कान्हा को प्रकृति की हर चीज से प्रेम था, लेकिन यहां हम आपको उन चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उन्हें अत्यधिक प्रिय हैं, और इनकी उपस्थिति ही उन्हें विशेष खुशी प्रदान करती है। खास बात ये कि प्रत्येक वस्तु विशेष संदेश भी प्रदान करती है...

गाय 
भगवान श्रीकृष्ण गायों को अपना सखा मानते थे। उनके बाल रूप को गायों के आसपास ही दिखाया जाता है। पुराणों में भी गाय अत्यधिक पूज्यनीय बताई गई है। गाय का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी बहुत ही उपयोगी है। इन पाचों को पंचगव्य कहा जाता है। जिनका पूजन में उपयोग शुभकारी बताया गया है। 

मिश्री
माखन से मिलते ही मिश्री घुल जाती है। कन्हैया बड़े ही चाव से इन्हें खाते थे। उन्हें प्रसाद स्वरूप भी ये बेहद पसंद है। ये माहौल के अनुसार खुद को ढाल लेने की सीख देती है। 

बांसुरी
बांसुरी और कन्हैया, दोनों को एक-दूसरे की पहचान कहा जाता है। बांसुरी में 3 गुण बताए गए हैं।

पहला- बांसुरी गांठ रहित होती है। यह संकेत देती है कि अपने मन में किसी तरह का मैल या गांठ नहीं रखना चाहिए।

दूसरा- बांसुरी की धुन अत्यंत ही मधुर है, जो व्यक्ति को मीठा बोलने के लिए प्रेरित करती है।

तीसरा- इस गुण को सबसे जरूरी बताया गया है। ये तब तक नहीं बजती जब तक इसे बजाया न जाए, अर्थात अनावश्यक बातें नहीं करना चाहिए। 

कमल की तरह पवित्र
कमल का फूल कीचड़ में खिलता है, लेकिन वह उससे अलग ही रहता है। इस फूल को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। कमल से हमें पवित्र रहने की सीख मिलती है।

वैजयंती माला
कन्हैया के गले में जो माला है वह वैजयंती माला है। कमल के बीजों से बनी होती है, जो कि कभी नहीं सड़ते, और ना ही कभी टूटते हैं। ये जीवन में सरल, सदा व एक समान व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है। 

मोर पंख
कन्हैया के मुकुट में मोर पंख लगे हैं। जो उन्हें अत्यंत प्रिय हैं। वे प्रेम में ब्रह्राचर्य की भावना को समाहित करने के उद्देश्य से प्रतीक स्वरूप मोर पंख का इस्तेमाल करते थे। 

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