पुरी जगन्नाथ रथयात्रा आज से, ये हैं खासियत

पुरी जगन्नाथ रथयात्रा आज से, ये हैं खासियत

Bhaskar Hindi
Update: 2018-06-29 11:06 GMT
पुरी जगन्नाथ रथयात्रा आज से, ये हैं खासियत

डिजिटल डेस्क, भोपाल। आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथयात्रा आरंभ होती है। जो इस वर्ष 14 जुलाई 2018 को है। इस दिन सुबह अनुष्ठान के बाद भगवान जगन्नाथ सहित तीनों विग्रहों को गर्भगृह से बाहर निकालकर स्नान मंडप में रखा जाएगा। दोपहर एक बजे महास्नान का अनुष्ठान शुरू होगा। यहां मंदिर के पुजारी विग्रहों को 51-51 जलपात्रों में रखे केवड़ा, गुलाब और अन्य फूलों से स्नान कराएंगे। भगवान का श्रृंगार कर मंगल आरती की जाएगी।

जिसके बाद यात्रा आरंभ होगी फिर इस यात्रा में श्रद्धालु ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भगवान श्री जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र या बलदेव) और उनकी बहन देवी सुभद्रा के इन रथों को खींचते हैं। कहते हैं जिसे रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है वह महाभाग्यवान माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही बात भक्तों में उत्साह, उमंग और अपार श्रद्धा का संचार करती है।

वास्तव में रथयात्रा एक सामुदायिक पर्व है। इस अवसर पर घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है और न ही किसी प्रकार का उपवास रखा जाता है। एक विशेष बात यह है कि रथयात्रा के समय यहां किसी प्रकार का जाति या लिंग भेद देखने को नहीं मिलता। समुद्र किनारे बसे पुरी नगर में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था और विश्वास का जो भव्य वैभव और विराट प्रदर्शन देखने को मिलता है वह दुनिया में अन्यत्र ही दुर्लभ है।

रथयात्रा वाले दिन भगवान जी स्वयं रथ पर सवार होते हैं। वहां के राजा स्वयं स्वर्ण मंडित झाड़ू से झाड़ू लगाकर रथयात्रा का शुभारंभ करवाते हैं। जगन्नाथ जी की रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से आरंभ होकर लगभग 4 मील की दूरी पर गुडिचा मंदिर (मौसी के घर) सूर्य अस्त होने से पहले पहुंच जाती है। वहां भगवान 10 दिन विश्राम करते हैं, फिर वापस बहुड़ा यात्रा द्वारा मंदिर पधारते हैं।

इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील, कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता। रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से आरंभ हो जाता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारंभ हो जाता है।

जब ये तीनों रथ तैयार हो जाते हैं तब ‘छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है। इसके साथ ही पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मंडप और रास्ते को साफ करते हैं।

उल्लेखनीय है कि पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। वर्तमान मंदिर 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण जगन्नाथ रूप में विराजित हैं। साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र या बलदेव) और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है।

पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।

बलराम जी के रथ को ‘ताल ध्वज’ कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले, नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ ध्वज’ कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।

जिसमें विश्व भर से लाखों लाख श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। पुरी की परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ, भाई बलदेव व बहन सुभद्रा तीन रथों पर सवार होकर श्रद्धालुओं पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाने के लिए उन्हें दर्शन देते हैं। प्रतिवर्ष नए रथों का निर्माण किया जाता है। हर वर्ष अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर नए रथों का निर्माण आरंभ हो जाता है। तीन विशाल रथों के निर्माण के लिए लगभग 200 कारीगर दिन-रात जुटे रहते हैं।

भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फुट ऊंचा, बलराम जी का ताल ध्वज रथ 45 फुट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फुट ऊंचा होता है। ये सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकडिय़ों) से बनाए जाते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ वृक्ष की पहचान की जाती है जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर हर वर्ष एक विशेष समिति का गठन करता है।
 

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