लेटी हुई मुद्रा में 'कुष्मांडा देवी', यहां लगातार रिसता रहता है पानी

लेटी हुई मुद्रा में 'कुष्मांडा देवी', यहां लगातार रिसता रहता है पानी

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-23 04:21 GMT
लेटी हुई मुद्रा में 'कुष्मांडा देवी', यहां लगातार रिसता रहता है पानी

डिजिटल डेस्क, कानपुर। नवरात्र के चैथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मां कुष्मांडा लेटी हुई मुद्रा में है। शहर से 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर ब्लाक में मां कुष्मांडा देवी का करीब 1000 वर्ष पुराना मंदिर है। 

रिसता रहता है पानी 

यहां मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हैं, जिससे लगातर पानी रिसता रहता है। ऐसी मान्यता है कि ये पानी ग्रहण करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीं नेत्र रोगों के लिए ये अति उत्तम बताया गया है। पिंडी के समीप से ये पानी कहां से रिसता है इसका पता आज तक नहीं लगाया जा सका है। इस मंदिर की एक खास बात और है यहां कोई पंडित नहीं, बल्कि माली पूजा-अर्चना करते व कराते हैं। मन्नत पूर्ण होने पर यहां भीगे चने मां को अर्पित किए जाते हैं।

ग्वाले को दिए दर्शन 

मंदिर को लेकर एक कथा भी प्रचलित है कहा जाता है कि यहां पहले घना जंगल था। इसी गांव का कुड़हा नामक ग्वाला गाय चराने जाया करता था। लेकिन शाम को जब वह दूध निकालने जाता तो गाय एक बूंद दूध नहीं देती। इससे वह परेशान होने लगा। एक रात मां ने ग्वाले को स्वप्न में दर्शन दिए। दूसरे दिन जब वह गाय लेकर जा रहा था तो अचानक गाय के आंचल से दूध की धारा निकल पड़ी। उसी स्थान पर माता की पिंडी निकली।

कुड़हा देवी 

चरवाहे कुड़हा के नाम पर मां कुष्मांडा का एक नाम कुड़हा देवी भी है। स्थानीय लोग मां को इसी नाम से पुकारते हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में कसबे के चंदीदीन भुर्जी ने कराया था। मंदिर के समीप ही दो तालाब बने हैं, जो कभी नहीं सूखते। भक्त एक तालाब में स्नान करने के पश्चात दूसरे कुंड से जल लेकर माता को अर्पित करते हैं। नवरात्र की चतुर्थी पर माता कूष्मांडा देवी के मंदिर परिसर में दीपदान महोत्सव काफी सुंदर होता है।

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