संकष्टी चतुर्थी : भगवान श्री गणेश का व्रत दिलाएगा सभी संकट से मुक्ति, जानिए पूजा-विधि और शुभ-मुहूर्त

संकष्टी चतुर्थी : भगवान श्री गणेश का व्रत दिलाएगा सभी संकट से मुक्ति, जानिए पूजा-विधि और शुभ-मुहूर्त

Bhaskar Hindi
Update: 2018-03-03 11:37 GMT
संकष्टी चतुर्थी : भगवान श्री गणेश का व्रत दिलाएगा सभी संकट से मुक्ति, जानिए पूजा-विधि और शुभ-मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। संकष्टी चतुर्थी हिंदू पंचाग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाई जाती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को "संकष्टी चतुर्थी या संकट चतुर्थी" कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली "चतुर्थी"। शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को "विनायक चतुर्थी" के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि अगर चतुर्थी मंगलवार के दिन हो तो उसकी महत्वता बढ़ जाती है और उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस पर्व को दक्षिण भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत धारण किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के लिए किया गया व्रत विद्या, बुद्धि, सुख-समृद्धि की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक माना जाता है।




जानें पूजन का विधि विधान-
- इस दिन व्रत रखें. सूरज उगने से पहले स्नान कर पूजा करें 

- पूजा के दौरान धूप जलाएं और इस मंत्र का जाप करें

गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।


- पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें

- शाम के समय व्रत पूर्ण करने से पहले संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें। 
- संकष्टी व्रत का पूजन शुभ मुहूर्त में करना ही लाभदायक माना जाता है
- 5 मार्च 2018 को पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 4 बजकर 53 मिनट से शुरु होगा और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है।


पूजन मुहूर्त-
चंद्रोदय- शाम 21:08 बजे

चतुर्थी शुभ मुहूर्त - 5 मार्च 2018 सुबह 06:41 - 08:09 (अमृत)
                                                      09:36 - 11:04 (शुभ)
                                       शाम को 16:53 - 18:20 (अमृत)

 


संकष्टी चतुर्थी कथा- 

एक नगर में एक युवती थी। वह चैत्र की चौथ को व्रत कर गणेश पूजन करने लगी। उसके व्रत को देखकर उसकी सास बोली –अरी ये क्या कर रही? ये सब मत किया कर। वह सास के मना करने के बाद भी श्री गणेश का व्रत पूजन करती रही। सास ने उसे बहुत डराया धमकाया तो बहु ने बोला माताजी मैं संकटनाशी श्री गणेश व्रत कर रही हूं। यह सुनकर सास को बहुत गुस्सा आया और अपने छोटे बेटे से बोली- पुत्र तेरी पत्नी जादू-टोना करती है, मना करने पर कहती है की गणेश व्रत पूजन करती है। हम नहीं जानते की गणेश जी कौन हैं? तुम इसकी खूब पिटाई करो ये तब मानेगी।

पति की मार खाने के बाद और बड़ी पीड़ा, कठिनाई के साथ उसने श्री गणेश व्रत किया और प्रार्थना की- हे श्री गणेश जी ! मेरे सास-ससुर के ह्रदय में अपनी भक्ति उत्पन्न करो। उसकी इस प्रार्थना के बाद श्री गणेश जी ने उस नगर के राजकुमार को धर्मपाल (युवती के ससुर) के घर छिपा दिया बाद में उसके वस्त्र आभूषण उतार कर राजा के भवन में डालकर अंतर्ध्यान हो गए।

धर्मपाल राजा के दरबार में मंत्री थे। राजा अपने पुत्र को ढूंढने लगे और धर्मपाल को बुलाकर बोले- मेरा पुत्र कहां गया? मंत्री धर्मपाल ने कहा- मैं नहीं जानता की राजकुमार कहां गया? अभी उसे सभी जगहों पर ढूढ़वाता हूं। दूतों ने चारों ओर तलाश किया, परन्तु राजकुमार का पता नहीं चला। पता नहीं चलने पर राजा ने मंत्री धर्मपाल को बुलाया और बोले दुष्ट यदि राजकुमार नहीं मिले तो तेरे कुल सहित तेरा वध करूंगा। धर्मपाल अपने घर गया अपनी पत्नी बंधू-बांधवों को राजा का फरमान सुनाते हुए विलाप करने लगा की अब हमारे कुल में कोई नहीं बचेगा। राजा साहब सब का वध कर देगें। अब मैं क्या करूं मेरे। कुटुम्ब-परिवार की रक्षा कौन करेगा?

उनके ऐसे वचन सुनकर छोटी बहु बोली— पिता जी! आप इतने दू:खी क्यों हो रहे हो? यह हमारे ऊपर गणेश जी का प्रकोप है, इसलिए आप विधिपूर्वक गणेश जी का व्रत-पूजन करें तो अवश्य पुत्र (राजकुमार) मिल जाएगा। इस व्रत को करने से सारे संकट दूर होते हैं, यह संकटनाशी व्रत हैं।

मंत्री धर्मपाल ने राजा को यह बात बताई राजा ने प्रजा के साथ श्रध्दा-पूर्वक चैत्र-कृष्ण चतुर्थी को श्री गणेश का संकटनाशी व्रत किया। इसके फल-स्वरूप श्री गणेश जी प्रसन्न हुए और सब लोगों को देखते-देखते राजकुमार को प्रकट कर दिया। इस लोक में सभी व्रतों में इससे बढ़कर अन्य कोई व्रत नहीं हैं।

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