शीतला षष्ठी : दैविक ताप से मुक्ति के लिए ऐसे रखें व्रत

शीतला षष्ठी : दैविक ताप से मुक्ति के लिए ऐसे रखें व्रत

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-14 04:52 GMT
शीतला षष्ठी : दैविक ताप से मुक्ति के लिए ऐसे रखें व्रत

 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  माघ शुक्ल षष्ठी तिथि का व्रत शीतला माता की उपासना का दिन है। इसे शीतला षष्ठी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने से शीतला माता की कृपा प्राप्त होती है एवं व्यक्ति दैहिक एवं दैविक ताप से मुक्त हो जाता है। यह व्रत पुत्र प्रदान करने वाला एवं पुत्री की कामना करने वाली सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए शुभ व उत्तम बताया गया है। इस वर्ष यह 23 जनवरी 2018 को है। 

 

व्रत विधि

-जो भी जातक इस  व्रत को धारण करे उसे गरम चीजों का सेवन वर्जित होता है। अर्थात इस दिन गरम चीजें नहीं खाना चाहिए। 

-इस दिन ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए, साथ ही जिस भी वस्तु का सेवन करें वह भी ठंडी हो। भारत के कुछ हिस्सों में इस दिन बासा अर्थात रात का खाना खाया जाता है। इसी वजह से बसायरा भी कहते हैं। 

-शीतला षष्ठी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता। भगवान को भी रात का बासी खाने का ही भोग लगाया जाता है। 

-अनेक स्थानों पर शीतला षष्ठी पर मिट्टी और पानी का खेल खेला जाता है। ठीक वैसे ही जैसे की होली। 

-ऐसी मान्यता है कि यह व्रत धारण करने से विभिन्न कालों में होने वाली बीमारियां पास नहीं आतीं। माता शीतला की कृपा से शरीर व मन-मस्तिष्क को राहत मिलती है। 

 

व्रत कथा

इस व्रत की कथा एक साहूकाल की पत्नी से जुड़ी है। मान्यता है कि माता शीतला के प्रताप से उसके घर में सबकुछ संपन्न था, किंतु अपने वचन के अनुसार वह शीतला षष्ठी का व्रत रखना भूल गई। इस दिन उसे परिवार के लोगों ने व्रत का निरादर किया, जिससे माता शीतला कुपित हो गईं और उसके पति की मृत्यु हो गई और वह स्वयं पागल, किंतु एक बार भटकते हुए वह जंगल पहुंची जहां उसे एक जलती हुई स्त्री दिखाई दी। वहां क्षमा मांगने पर माता शीतला जो उस स्त्री के रूप में आईं थी उसे व्रत करने और दही का लेप करने के लिए कहा। उसने वैसा ही किया और एक बार फिर वह पहले की तरह ठीक हो गई और उसके पति के भी प्राण लौट आए। 

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