जानिए श्रावण मास में क्यों नगर भ्रमण पर निकलते हैं बाबा महाकाल

जानिए श्रावण मास में क्यों नगर भ्रमण पर निकलते हैं बाबा महाकाल

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-31 11:31 GMT
जानिए श्रावण मास में क्यों नगर भ्रमण पर निकलते हैं बाबा महाकाल

डिजिटल डेस्क, उज्जैन। भगवान शिव राजाधिराज के रूप में उज्जैन में विराजमान हैं। श्रावण मास में वो अपनी प्रजा का हालचाल पता करने के लिए उज्जैन नगर भ्रमण पर निकलते हैं। महाराज महाकाल सबको मिलते हैं, सबको दर्शन देते हैं। एक तरफ सुरक्षा का कड़ा दायरा और दूसरी तरफ भक्ति का चरम उत्कर्ष, जिसने भी यह दृश्य पहली बार देखा उसकी तो भावावेश में आंखें ही छलछला जाती हैं।

महाकालेश्वर मंदिर का समूचा परिसर जयकारों से गूंज उठता है। हाथी, घोड़े, चंवर डुलाते कर्मी, सरकारी बैंड की धुन, शहर के प्रतिष्ठित गणमान्य नागरिक, आमजन की श्रद्धा का उमड़ता सैलाब, बिल्वपत्र, विभिन्न फल और विविध प्रकार के फूलों की विशेष रूप से बनी माला, झांझ-मंजीरे, ढोल, नगाड़ों, शाही बैंड के साथ होता अनवरत कीर्तन और अपने राजा को देख भर लेने की विकलता के साथ दर्शनार्थी का मन बहुत ही भाव-विभोर हो जाता है।

सवारी के साथ पधारे गजराज अपनी सूंड को ऊंची कर राजा के सम्मान में हर्ष व्यक्त करते हैं। पवित्र मंत्रोच्चार के साथ शाही सवारी कई घंटों के बाद पुन: मंदिर पहुंचती है। नगरवासी दिनभर अपने राजा के सम्मान में व्रत करते हैं और उसे सवारी के दर्शन के बाद ही खोलते हैं।

 


उज्जैन नगर के मुख्य मार्ग से भ्रमण करती सवारी का सबसे सुन्दर दृश्य क्षिप्रा नदी के तट पर देखने को मिलता है, जब नदी के दूसरे छोर से संत-महात्मा भव्य आरती करते हैं और वहीं विशेष तोप की सलामी के मध्य से राजा महाकाल क्षिप्रा का आचमन करते हैं।

देश के अलग-अलग प्रांतों से लोग श्रावण सोमवार की इस दिव्य सवारी के दर्शन करने आते हैं, और मनचाहा वरदान प्राप्त करते हैं। इस भव्य सवारी को देखने के बाद ही राजा महाकालेश्वर की दिव्यता को अनुभूत किया जा सकता है। राजा महाकाल इस तरह श्रावण के प्रति सोमवार एवं भाद्रपद के कृष्ण पक्ष के दो सोमवार नगर भ्रमण करते हैं और कहते हैं कि इस समय महाकाल इतनी राजसी मुद्रा में होते हैं कि हर अभिलाषा को पूरी करने का आशीर्वाद देते चलते हैं।

 

 


सिंधिया परिवार ने शुरु की परंपरा

सिंधिया परिवार की ओर से शुरू की गई ये परंपरा आज भी जारी है। पहले महाराज स्वयं शामिल होते थे बाद में राजमाता नियमित इस यात्रा में शामिल होती रहीं और आज भी उनका कोई ना कोई प्रतिनिधि सम्मिलित रहता है। महाकालेश्वर मंदिर में एक अखंड दीप भी आज भी उन्हीं के सौजन्य से प्रज्ज्वलित है।

बहुत कम लोग जानते हैं कि भूतपूर्व कलेक्टर स्व. श्री बुच के खाते में एक अनूठा मील का पत्थर अंकित है। आज जो राजा महाकालेश्वर की सवारी का भव्य स्वरूप है उसका संपूर्ण श्रेय बुच साहब को जाता है। यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि शाही सवारी की यह यशस्वी परंपरा का अतीत क्या है और कब से यह परंपरागत आकर्षक रूप में निकाली जाने लगी है।

 


स्वयं बुच साहब ने अपने करीबी मित्रों के बीच चर्चा में बताया था कि कैसे यह सवारी इस स्वरूप तक पहुंची। उन्होंने बताया था कि पहले श्रावण मास के आरंभ में सवारी नहीं निकलती थी, सिर्फ सिंधिया वंशजों के सौजन्य से महाराष्ट्रियन पंचाग के अनुसार दो या तीन सवारी ही निकलती थीं। विशेषकर अमावस्या के बाद ही यह निकलती थी।

एक बार उज्जयिनी के प्रकांड ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण स्व. पं. सूर्यनारायण व्यास के निवास पर कुछ विद्वानों के साथ कलेक्टर बुच भी बैठे थे। उनमें महाकाल में तत्कालीन पुजारी सुरेन्द्र पुजारी के पिता भी उपस्थित थे। आपसी विचार विमर्श में परस्पर सहमति से तय हुआ कि क्यों न इस बार श्रावण के आरंभ से ही सवारी निकाली जाए और समस्त भार कलेक्टर को दिया जाए।

फिर सवारी निकाली गई और उस समय उस प्रथम सवारी का पूजन सम्मान करने वालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, राजमाता सिधिया व शहर के गणमान्य नागरिक प्रमु्ख थे। सभी पैदल सवारी में सम्मिलित हुए और नगर की प्रजा ने रोमांचित होकर घर-घर से पुष्प वर्षा की। इस तरह एक खूबसूरत परंपरा का आरम्भ हुआ।

 


महाकाल महाराज के रूप में साक्षात करते हैं निवास

सावन महीने में महाकाल की नगरी उज्जैन में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है। उज्जैन, सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी के रूप में भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। प्राचीन काल में इस शहर को अवन्तिका के नाम से जाना जाता था। इसका उल्लेख प्राचीन धर्मग्रन्थों में भी मिलता है। मान्यता है कि आज भी उज्जैन शहर में भगवान शिव राजाधिराज महाकाल महाराज के रूप में साक्षात निवास करते हैं। सावन, महाकाल और उज्जैन इन तीनों की पवित्र त्रिवेणी से भक्तों का जीवन सफल हो जाता है। सावन में शिवभक्ति और शिवभक्तों का उत्साह देखते ही बनता है।

प्रजा अपने महाकाल राजा से मिलने के लिए इस तरह व्याकुल होती है कि शहर के चौक-चौराहे पर स्वागत की विशेष तैयारी की जाती है। शाम चार बजे राजकीय ठाट-बाट और वैभव के साथ राजा महाकाल विशेष रूप से फूलों से सुसज्जित चांदी की पालकी में सवार होते हैं। जैसे ही राजा महाकाल पालकी में विराजमान होते हैं। ठंडी हवा के एक शीतल झोंके से या हल्की फुहारों से प्रकृति भी उनका भीना सा अभिवादन करती है।

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