सीता अष्टमी 8 काे, राम-सीता का पूजा देगा तीर्थाें का पुण्य

सीता अष्टमी 8 काे, राम-सीता का पूजा देगा तीर्थाें का पुण्य

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-18 04:16 GMT
सीता अष्टमी 8 काे, राम-सीता का पूजा देगा तीर्थाें का पुण्य

 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पुराणों में वर्णन मिलता है कि मां सीता मां लक्ष्मी का अवतार थीं। उन्होंने भगवान विष्णु के राम अवतार के साथ उनकी संगिनी  मां सीता के रूप में जन्म लिया था। फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मां सीता के जन्म के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि यही वह दिन है जब देवी सीता ने संसार में अवतार लिया था। वे धरती में खेत जोतने के दौरान मिथिला नरेश को प्राप्त हुई थीं। सीता अष्टमी के दिन मां सीता की आराधना की जाती जाती है। इस दिन मां सीता और प्रभु श्रीराम के एक साथ दर्शनों का अत्यधिक पुण्य है। इस बार सीता अष्टमी 8 फरवरी 2018 को मनाई जाएगी। इस दिन को जानकी जयंती भी कहा जाता है। 


प्रकट होने की कहानी
देवी सीता का अवतरण धरती से हुआ था इसलिए वे धरती पुत्री और और अन्नपूर्णा भी कही जाती हैं। सीता अष्टमी पर सुहागिनों के लिए व्रत रखना पूजा करना अति उत्तम बताया गया है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत पूजा से देवी सीता के समान ही पतिव्रत धर्म और श्रेष्ठ नारी होने का वरदान प्राप्त होता है। सीता अष्टमी पर जगह-जगह अनेक आयोजन भी किए जाते हैं। सुखद दांपत्य जीवन की कामना से भी यह व्रत रखा जाता है। 


सुहागिनों को भेंट करें ये वस्तुएं
ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त विधि-विधान से मां सीता और राम की पूजा करता है उन्हें तीर्थ दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है। सौभाग्य के साथ ही संतान का सुख भी प्राप्त होता है। इस दिन सौभाग्यशाली महिलाओं को सुहाग की वस्तुएं भी भेंट की जाती हैं। लाल वस्त्रों के दान का भी अत्यधिक महत्व है। 

 

 

ऐसी है कथा

पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि संतान प्राप्ति की कामना से महाराजा जनक जब यज्ञ की भूमि तैयार करने हल से भूमि जोत रहे थे उसी समय हल का फल धरती में एक स्थान पर फंस गया। उसी स्थान से एक बालिका के रोने की आवाज आई, जिसे खोदेन पर वहां से देवी सीता प्रकट हो गईं। हल के फल को सीत कहते हैं, जिसकी वजह से इनका नामकरण सीता कर दिया गया। 

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