हिंदू धर्म में प्राचीन काल से पश्चाताप को लेकर हैं ऐसी मान्यताएं

हिंदू धर्म में प्राचीन काल से पश्चाताप को लेकर हैं ऐसी मान्यताएं

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-20 10:40 GMT
हिंदू धर्म में प्राचीन काल से पश्चाताप को लेकर हैं ऐसी मान्यताएं

डिजिटल डेस्क,भोपाल। युगों युगों से देखा जाता है रहा है कि जब इंसान कोई गलती कर देता है तो उसके पश्चाताप के लिए मंदिरों में जाता है, किसी ज्ञानी के कहे अनुसार दान-धर्म का काम करता है। बता दें कि किसी गलती का पश्चाताप करने के महत्व को स्मृति और पुराणों में विस्तार से समझाया भी गया है। गुरु और शिष्य परंपरा में भी गुरु अपने शिष्य को प्रायश्चित करने के अलग-अलग तरीके बताता है।

कहते हैं कि किसी गलती का प्रायश्चित करने से इंसान का दिल निर्मल हो जाता है। हिंदू धर्म में पश्चाताप करने को लेकर कहा गया है कि अधिक से अधिक पुण्य करने से ह्रदय को शांति मिलती है और किए गए किसी पाप से क्षमा याचना भी मिलती है। लाल किताब में भी लिखा है कि कम से कम 43 दिन नंगे पांव मंदिर जाकर अपने पापों की क्षमा मांगनी चाहिए।

भगवान श्रीराम के बारे में भी कहा गया है कि त्रेता युग में उन्होंने रावण का वध किया, जो सभी वेद शास्त्रों का ज्ञाता होने के साथ-साथ ब्राह्मण भी था। जिस कारण उनके सिर ब्रह्महत्या का दोष लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए बाद में उन्हें कपाल मोचन तीर्थ में स्नान और तप करना पड़ा, जिसके बाद उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिली।   

प्राचीन काल में देवता या मनुष्य अपने अपने तरीके से प्रायश्चित किया करते थे। कहा जाता है कि पाप की तीव्रता के अनुसार प्रायश्‍चित मंद से तीव्र स्वरूप का होता है। कई बार इंसान से अनजाने में पाप हो जाता है, जिसे सबसे सामने बताने से उसका दोष नष्ट हो जाता है। 

पाप को लेकर पुराणों में भी दंड विधान है, जब कोई व्यक्ति कोई सामान्य या घोर पाप करता है तो उसे अगर वह पश्चाताप कर लेता है तो उसके पाप क्षम्य हो जाते हैं। यदि वह वही पाप बार बार करता है कि तो फिर उसे उसके कृत के लिए दंड भुगतना ही पड़ता है। 

जैन धर्म में भी "क्षमा पर्व" प्रायश्चित करने का दिन माना गया है। ईसाई और मुस्लिम धर्म में भी इस तरह की परंपरा को शामिल किया गया है। ईसाई धर्म में इसे "कंफेसस" और इस्लाम में "कफ्फारा" कहते हैं। यह प्रायश्चित का ही एक स्वरूप है।

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