जयंती : जानिए मां काली से साक्षात्कार करने वाले परमहंस जी के बारे में

जयंती : जानिए मां काली से साक्षात्कार करने वाले परमहंस जी के बारे में

Manmohan Prajapati
Update: 2019-03-07 06:38 GMT
जयंती : जानिए मां काली से साक्षात्कार करने वाले परमहंस जी के बारे में

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत और विचारक थे। स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने प्रायः सभी धर्मों की एकता पर बल दिया था। रामकृष्ण परमहंस का जन्म हिन्दू फाल्गुन माह की दोज को पश्चिम बंगाल (तत्कालीन बंगाल प्रान्त) के कामारपुकुर नामक गांव में हुआ था, जो इस बार 8 मार्च 2019 को आ रहा है। इनकी माता का नाम चंद्रमणि देवी और पिता का नाम खुदीराम था। रामकृष्ण परमहंस जी को बचपन में ही विश्वास हो गया था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं। ईश्वर की प्राप्ति के लिए  उन्होंने कठोर साधना और भक्ति की थी। ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में माता काली से इनका साक्षात्कार होता था।

हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मानव जीवन से संबंधित कुछ ऐसे सवाल किए थे जिसे हर मनुष्य को जानना चाहिए। बता दें, हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि उन्हें दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में होता है। उनमें कई तरह की सिद्धियां थीं लेकिन वे सिद्धियों के पार चले गए थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपना शिष्य बनाया और जीवन के रहस्य बता कर उन्हें महान बनाया।

जीवन एक परम भक्त की तरह  
रामकृष्ण परमहंस ने अपना ज्यादातर जीवन एक परम भक्त की तरह बिताया। वह काली के भक्त थे। उनके लिए काली कोई देवी नहीं थीं, वह एक जीवित हकीकत थी। 12 साल की उम्र तक वो स्कूल गए लेकिन शिक्षा व्यवस्था की कमियों के चलते उन्होंने जाना बंद कर दिया। उन्हें पुराण, रामायण, महाभारत और भगवत पुराण का अच्छा ज्ञान था। 

सभी इंसानों के भीतर भगवान है
उनका कहना था कि सभी इंसानों के भीतर भगवान है लेकिन हर इंसान भगवान नहीं है, इसलिए उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रामकृष्ण परमहंस की चेतना इतनी ठोस थी कि वह जिस रूप की इच्छा करते थे, वह उनके लिए एक हकीकत बन जाती थी। 

ईश्वर-दर्शन की व्याकुलता
बता दें, रामकृष्ण बहुत छोटे ही थे जब उनके पिता का निधन हो गया था। रामकृष्ण के मन में ईश्वर को देखने का यह विचार पहले तो एक जिद रूप में आया, फिर वह बाद में एक भक्ति की खोज में बदल गया। वे ईश्वर को खोजते और उसके लिए तड़पते रहे। ईश्वर की खोज में मंदिर को छोड़कर पास के एक जंगल में जाकर रहने लगे। ईश्वर-दर्शन की व्याकुलता और अधीरता बढ़ने लगी थी और उनका व्यवहार असामान्य होने लगा। उन्हें लगने लगा था कि यदि धर्म और ईश्वर जैसी कोई वस्तु है, तो उसे मनुष्य की अनुभूति पर भी खरा उतरना चाहिए। उन्हें लगा कि ईश्वर यदि है तो उसे वे अपनी खुली आंखों से देखकर रहेंगे।

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