श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम का पाठ चमकाएगा भाग्य
श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम का पाठ चमकाएगा भाग्य
डिजिटल डेस्क, भोपाल। आज हम जिस मंत्र स्त्रोत के बारे में चर्चा करेंगे उसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। वर्तमान में लोग शास्त्रों, पुराणों और ज्योतिष जैसी चीजों से दूर हो रहे हैं। प्राचीन काल से सिद्ध किए जाने वाले ये मंत्र स्त्रोत आदि अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं। उनमें उपस्थित शक्ति किसी का भी भाग्य चमकाकर उसे ऐश्वर्यशाली एवं धनवान बना सकती है।
सनातन धर्म दुनिया के महानतम धर्मों में से एक रहा है। सनातन धर्म के अंर्तगत आने वाले शास्त्रों और पुराणों में ऐसी कई चीजें वर्णित हैं जो मानव जाति के उद्धार और मोक्ष के लिए बनाई गई हैं। इन्हीं में से कुछ ऐसे मंत्र हैं जिन्हें सिद्ध करने से अलौकिक सिद्धि प्राप्त होती है और भाग्य भी चमक जाता है।
धर्म ग्रंथों में ये कहा जाता है कि यदि किसी ने 108 दिन तक लगातार इस मंत्र का जाप कर लिया तो ये सिद्ध हो जाता है और उस व्यक्ति को सम्पूर्ण सुख और साधन प्राप्त हो जाते हैं। हर कोई उसकी बात सुनता और मानता है। इस मंत्र का जाप प्रत्येक मंत्र के बाद किया जाता है। जैसे यदि आप धन प्राप्ति के लिए कोई भी मंत्र जप रहे हैं और फिर भी आपको लाभ नहीं हो रहा तो इस मंत्र का साथ में जाप करने से तुरंत सफलता प्राप्त हो जाती है।
इस मंत्र का नाम है "श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम" भाग्य चमकाने, धन प्राप्ति, मान-सम्मान, साहस-बल और कष्टों से मुक्ति के लिए आप लाखों मंत्रों का जप कर लें किन्तु यदि आपने इस मंत्र का जाप नहीं किया तो किसी मंत्र का लाभ आपको नहीं मिलेगा।
श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम स्वयं भगवान शंकर ने अपने श्री मुख से कहा है।
भगवान महादेव ने स्वयं माता पार्वती को ये स्त्रोत सुनाया था। ये अत्यंत गोपनीय मंत्र माना जाता है। जिसे किसी को भी बताए बिना ही जपना चाहिए।
108 दिन लगातार इस मंत्र का जाप करें। यदि 108 बार नहीं कर पा रहे हैं तो श्रावण मास और नवरात्री के तीनों समय अर्थात सुबह, दोपहर और सायंकाल इसे सिर्फ सुन भी लें तो ये आपको सर्व सुख एवं शांति देता है।
"श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम"
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।8।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी ।।9।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।।।10।।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।