छठ पूजा का दूसरा दिन, खीर और रोटी का प्रसाद करें ग्रहण

छठ पूजा का दूसरा दिन, खीर और रोटी का प्रसाद करें ग्रहण

Manmohan Prajapati
Update: 2018-11-12 07:36 GMT
छठ पूजा का दूसरा दिन, खीर और रोटी का प्रसाद करें ग्रहण

डिजिटल डेस्क, भोपाल। देशभर में इन दिनों धूमधाम से छठ पर्व मनाया जा रहा है। 14 नवंबर तक चलने वाले इस पर्व के दूसरे दिन सोमवार को (नहाय-खाए के बाद) खरना की शुरुआत हुई जो छठ पूजा का दूसरा चरण है। इसे काफी कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें व्रती को निर्जला उपवास रखना होता है। इसके बाद शाम को पूजा होती है और खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। अथर्ववेद के अनुसार षष्ठी देवी भगवान भास्कर की मानस बहन हैं। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बच्चों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। इसीलिए बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी पूजा की जाती है, ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं।

छठ पूजा के अगले चरण

सायंकालीन अर्घ्य: मंगलवार 13नवंबर
प्रात:कालीन अर्घ्य: बुधवार 14 नवंबर 
सूर्य योग में भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य 13 नवंबर को

प्रसाद 

तीन दिनों तक चलने वाली इस पूजा में मईया को अलग-अलग भोग लगाया जाता है। दूसरे दिन प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक और शक्कर का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके अलावा ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

गन्ने के रस में बनी खीर
दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक और शक्कर का उपयोग नहीं किया जाता है। इस समय पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में सम्मिलित किया जाता है। संध्या समय पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा आस-पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रति किसी एक नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। 

पूजा विधि 
दूसरे दिन यानी आज शाम के समय गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाएं। सबसे पहले व्रती खीर खाएं बाद में परिवार और ब्राह्मणों को दें। 
सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में सारे व्रती घाट पर पहुंचे। इस दौरान वो पकवानों की टोकरियों, नारियल और फलों को साथ रखें।  
सभी व्रती उगते सूरज को डाल पकड़कर अर्घ्य दें। 
छठी की कथा सुनें और प्रसाद का वितरण करें। 
आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें।
 

Similar News