देवउठनी एकादशी आज, इस शुभ मुहूर्त में करें तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी आज, इस शुभ मुहूर्त में करें तुलसी विवाह

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-22 03:03 GMT
देवउठनी एकादशी आज, इस शुभ मुहूर्त में करें तुलसी विवाह

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तुलसी विवाह, देवउठनी ग्यारस या एकादशी इस वर्ष 31 अक्टूबर मंगलवार 2017 अर्थात आज मनाई जा रही है। यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे की शालिग्राम (पत्थर) से विवाह कराया जाता है। मंडप सजता है दावत होती है। दिवाली के बाद इस त्योहार को भी बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन एक बार फिर दिवाली की तरह ही माहौल होता है। 

दरअसल, चार महीने तक देवता सोए हुए होते हैं और इस दौरान सिर्फ पूजा पाठ ही होता है कोई शुभ कार्य नहीं होता है। देव उठनी के दिन सभी जागते हैं और शुभकार्यों के लिए मुहूर्त प्रारंभ होता है। देवताओं के उठने के बाद पहला शुभ कार्य होता है तुलसी विवाह। हालांकि इस वर्ष विवाह मुहूर्तों के प्रारंभ होने में देरी है। 12 अक्टूबर से 6 नवंबर तक गुरू अस्त रहने से शादियों का सिलसिला 31 अक्टूबर यानी देवउठनी एकादशी से न होकर 19 नवंबर से शुरू होगा।

 

तुलसी विवाह पूजा का समय 

द्वादशी तिथि 31 अक्टूबर 2017 मंगलवार 18.55 पर प्रारंभ होगी। 
1 नवंबर 2017 बुधवार 17.56 पर समाप्त होगी।

तुलसी विवाह की कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार वृंदा अर्थात तुलसी का विवाह जालंधर नामक राक्षस के साथ हुआ था। तुलसी बहुत गुणवान और पतिव्रता स्त्री थी लेकिन वे अपने पति के कुकर्मों और अत्याचारों से दुःखी थी। वे भगवान विष्णु की अनन्य भक्त भी थीं। पुराणों में वर्णित है कि उनकी भक्ति और पतिव्रत धर्म में इतनी शक्ति थी कि जालंधर को हरापाना किसी के लिए भी संभव नही था।  

जालंधर के अत्याचारों को देखते ही देवताओं ने श्रीहरि से उससे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। इस पर भगवान विष्णु जालंधर का वेश बनाकर वृंदा के पास चले गए। उन्हें देखते ही वृंदा ने पति समझकर उन्हें स्पर्श कर लिया। इससे उनका पतिव्रत धर्म टूट गया और युद्धभूमि में जालंधर की मृत्यु हो गई। क्रोधित वृंदा ने भगवान विष्णु को पाषाण (पत्थर) बनने का श्राप दे दिया। सभी देवताओं और देवी लक्ष्मी की प्रार्थना पर वृंदा ने उन्हें श्राप मुक्त कर दिया। इस पर वृंदा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें सदैव ही अपने साथ पूजे जाने का आशीर्वाद दिया।  

अपने पति की मृत्यु के बाद वृंदा सतीधर्म का पालन करते हुए सती हो गयी। माना जाता है उनकी उस भस्म से ही तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ था। ये भी मान्यता है कि तुलसी के बगैर भगवान विष्णु की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई।

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