तुलसीदास जयंती: रामबोला से तुलसीदास बनने तक कुछ ऐसा था सफर, जानें प्रभु श्री राम के भक्त के जीवन से जुड़ी खास बातें

तुलसीदास जयंती: रामबोला से तुलसीदास बनने तक कुछ ऐसा था सफर, जानें प्रभु श्री राम के भक्त के जीवन से जुड़ी खास बातें

Manmohan Prajapati
Update: 2020-07-26 04:30 GMT
तुलसीदास जयंती: रामबोला से तुलसीदास बनने तक कुछ ऐसा था सफर, जानें प्रभु श्री राम के भक्त के जीवन से जुड़ी खास बातें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह जयंती 27 जुलाई यानी सोमवार को मनाई जा रही है। यह तो भी जानते हैं कि तुलसी दास जी प्रभु श्री राम के भक्त थे। गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया बल्कि सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास भी किया।

उन्होंने श्री राम की कथा "रामचरितमानस" के रूप में लिखी थी। इसके अलावा उन्होंने कवितावली, दोहावली, हनुमान बाहुक, पार्वती मंगल, रामलला नहछू आदि कई रचनाएं भी कीं। इस महान कवि की जयंती के मौके पर आइए जानते हैं इनके जीवन से जुड़ी खास बातें...

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संघर्ष से बचा अस्तित्व
संत तुलसीदास, अपनी रचनाओं को माता-पिता कहने वाले वे विश्व के प्रथम कवि हैं। माता की मृत्यु और पिता द्वारा अमंगलकारी समझकर त्याग दिए जाने के बाद तुलसी दासी चुनियां पर निर्भर रहे। दासी ने जब उनका साथ छोड़ दिया, तो भूख मिटाने के लिए उन्हें घर-घर भटकना पड़ा। उस समय उन्हें अशुभ मानकर लोग अपना द्वार बंद कर लेते थे। लेकिन पग-पग पर संघर्ष ने ही उनके अस्तित्व को बचाया।

कुछ ऐसा था बचपन
तुलसीदास का जन्म संवत 1956 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्तमूल नक्षत्र में हुआ था। उनके पिता का नाम आतमा रामदुबे व माता का नाम हुलसी था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास जन्म के समय रोए नहीं थे, बल्कि उनके मुंह से राम शब्द निकला था। लेकिन उनके माता-पिता इस बात से परेशान थे कि उनके पुत्र के मुख में बचपन से ही 32 दांत थे। इसको लेकर माता हुलसी को अनिष्ट की शंका भी हुई, जिससे वे उन्हें दासी के साथ ससुराल भेज आईं। इसके कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया। इसके बाद पांच वर्ष की अवस्था तक दासी ने ही पालन-पोषण किया। 

वेद-वेदांग का अध्ययन 
हालांकि कुछ समय बाद वह भी चल बसीं और तुलसी जी अनाथ हो गए थे। इसके बाद संतश्री नरहयान्नद जी ने इनका पालन-पोषण किया। उन्होंने बालक का नाम रामबोला रखा और अयोध्या आकर उनकी शिक्षा-दीक्षा कराई। कहा जाता है कि बालक रामबोला बचपन से ही बुद्धिमान थे। गुरुकुल में उनको हर पाठ बड़ी आसानी से याद हो जाता था। यहां से बालक रामबोला काशी चले गए। उन्होंने काशी में 15 वर्ष तक वेद-वेदांग का अध्ययन किया।

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पत्नी प्रेम
जब इनका विवाह हुआ तो इन्हें परिवार मिल गया और यह पत्नी के प्रेम में डूब गए। इनका प्रेम कब आसक्ति में बदल गया स्वयं उन्हें अहसास नहीं हुआ। जिस समय तुलसीदास जी अपनी पत्नी के घर में प्रवेश के लिए दीवार फांदने का प्रयास कर रहे थे, उस समय उन्हें खिड़की से लटकी हुई रस्सी दिखाई दी और उसे ही पकड़कर वे लटक गए और दीवार फांद गए। लेकिन हैरानी की बात यह कि जिसे तुलसीदासजी ने रस्सी समझ लिया था वह एक सांप था जिसकी जानकारी उन्हें बाद में हुई। उनके ऐसा करने पर पत्नी काफी क्रोधित हुईंं। 

उन्होंने गुस्से में कहा कि, मेरी हाड़-मास की देह से इतना प्रेम करने की बजाय आपने इतना प्रेम राम-नाम से किया होता तो जीवन सुधर जाता। इस पर तुलसीदास का अंतर्मन जाग उठा और वे उसी समय पत्नी के कक्ष से निकल गए और राम-नाम की खोज में चल पड़े। 

और रामबोला बन गए तुलसीदास
पत्नी ने क्रोध में जो बात कही, उसने रामबोला को तुलसीदास बना दिया। बताते हैं कि संवत 1628 में शिव जी उनके स्वप्न में आए। और उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। तुलसी उनकी आज्ञा मानकर अयोध्या आ गए। संवत 1631 में तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना शुरू की और दो वर्ष सात महीने 26 दिन में ग्रंथ की रचना पूरी हो गई। इस रचना के साथ अमर हो गए। 

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