बद्रीनाथ के कपाट हुए बंद, कुंवारी लड़कियों पर अहम जिम्मेदारी

बद्रीनाथ के कपाट हुए बंद, कुंवारी लड़कियों पर अहम जिम्मेदारी

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-19 18:37 GMT
बद्रीनाथ के कपाट हुए बंद, कुंवारी लड़कियों पर अहम जिम्मेदारी

डिजिटल डेस्क, देहरादून। बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल तक के लिए बंद कर दिए गए हैं। रविवार शाम सात बजकर 28 मिनट पर सनातन परम्परा और वैदिक विधि विधान एवं मंत्रोच्चार के बीच के मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के बीच तमाम प्रक्रियाएं संपन्न हुईं। रविवार शाम 7 बजकर 28 मिनट पर कपाट बंद होते ही वार्षिक चार धाम यात्रा भी पूरी हो गई। 17 वर्षो में ऐसा पहली बार हुआ, जब शाम के समय सूर्यास्त बाद बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद हुए।

कपाट बंद होने से पहले बर्फबारी

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने से पहले माणा घाटी में हुई बर्फवारी से धाम चांदी की तरह चमक उठा। धाम में ठंड बढ़ने के बावजूद श्रद्धालु उत्साहित नजर आए। रविवार सुबह ब्रह्म मुहूर्त में भगवान बद्रीनाथ का अभिषेक फूलों से श्रृंगार कर किया गया। इस ख़ास मौके के लिए मंदिर को रंग-बिरंगे और खुशबूदार फूलों से सजाया गया। बर्फबारी के बीच वेदपाठियों का वैदिक मंत्रों का सिलसिला सुबह से ही जारी रहा। सुबह 11 बजे धर्माधिकारी और वेदपाठी ने स्वस्ति वाचन किया। 3 बजे मुख्य पुजारी ने रावल स्त्री वेश धारण कर महालक्ष्मी को गर्भ गृह में स्थापित किया।

भगवान ओढ़ेंगे कुंवारी लड़कियों का बनाया कंबल

रविवार शाम 7 बजकर 20 मिनट पर बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद करने की प्रक्रिया शुरू हुई और 7 बजकर 28 मिनट पर कपाट बंद कर दिए गए। कपाट बंद होने की प्रक्रिया में बद्रीनाथ धाम से महज दो किलोमीटर दूर देश का आखरी गांव माणा की कुंवारी लड़कियों पर खास जिम्मेदारी है। दरअसल इस गांव की कुंवारी लड़कियां स्थानीय ऊन से एक शॉल बनाती है जिसे स्थानीय भाषा में बीना कम्बल कहते है। अगले 6 महीने तक भगवान इस कम्बल को ओढ़ते है। भगवान को घी का लेप लगाने के बाद कम्बल उढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान को ठंड न लगे इसीलिए उन्हें ये कम्बल उढ़ाया जाता है।

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