व्रत: विजया एकादशी आज, इस व्रत से मिलती है शत्रुओं पर विजय

व्रत: विजया एकादशी आज, इस व्रत से मिलती है शत्रुओं पर विजय

Manmohan Prajapati
Update: 2020-02-15 10:20 GMT
व्रत: विजया एकादशी आज, इस व्रत से मिलती है शत्रुओं पर विजय

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एकादशी तिथि हिंदू धर्म में खास महत्व रखती है। इसे समस्त पापों का हरण करने वाली तिथि भी कहा जाता है। यह अपने नाम के अनुरूप फल भी देती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार विजया एकादशी व्रत 19 फरवरी यानी कि आज है। यह अपने नाम के अनुरूप फल भी देती है। इस दिन व्रत धारण करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है व जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। 

शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य मिलता है। इस दिन भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। विजया एकादशी व्रत की पूजा में सप्त धान रखने का विधान है।

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व्रत मुहूर्त 
विजया एकादशी : 19 फरवरी सुबह 06:55 बजे से रात 09:11  बजे तक
कुल अवधि : 2 घंटे 15 मिनट

भगवान विष्णु का करें ध्यान
पूजा से पूर्व एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान रखें। वेदी पर जल कलश स्थापित कर, आम या अशोक के पत्तों से सजाएं। इस वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। पीले पुष्प, ऋतुफल, तुलसी आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारें। भगवान श्री नारायण की उपासना करें। व्रत की सिद्धि के लिए घी का अखंड दीपक जलाएं। 

व्रत व पूजा विधि 
विजया एकादशी व्रत व पूजा विधि मुनि वकदालभ्य ने जो विधि भगवान श्रीराम को बताई वह इस प्रकार है। एकादशी से पहले दिन यानि दशमी को एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें फिर अपनी क्षमतानुसार सोने, चांदी, तांबे या फिर मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें। 

एकादशी के दिन पंचपल्लव कलश में रखकर भगवान विष्णु का चित्र या की मूर्ति की स्थापना करें और धूप, दीप, चंदन, फल, फूल व तुलसी आदि से श्री हरि की पूजा करें। द्वादशी के दिन ब्राह्ण को भोजन आदि करवाएं व कलश को दान कर दें। इसके बाद व्रत का पारण करें। व्रत से पहली रात्रि में सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस प्रकार विधिपूर्वक उपवास रखने से उपासक को कठिन से कठिन परिस्थियों में भी विजय प्राप्त होती है।

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भगवान राम को मिली थी विजय
त्रेता युग में जब रावण माता सीता का हरण करके लंका ले गया, तब प्रभु श्री राम ने लंका प्रस्थान करने का निश्चय किया। जब श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे, तब उन्होंने भयंकर जलीय जीवों से भरे समुद्र को देखकर लक्ष्मण जी से कहा, हे सुमित्रानंदन, किस पुण्य के प्रताप से हम इस समुद्र को पार करेंगे।" तब लक्ष्मण जी बोले, "हे पुरुषोत्तम, आप आदि पुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहां से कुछ दूरी पर बकदालभ्य मुनि का आश्रम है। 

प्रभु आप उनके पास जाकर उपाय पूछिए।" लक्ष्मण जी की इस बात से सहमत होकर श्री राम, बकदालभ्य ऋषि के आश्रम गए और उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुविधा उनसे कही। तब मुनिवर ने उन्हें बताया कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को यदि आप समस्त सेना सहित व्रत रखें तो आप समुद्र पार करने में सफलता के साथ ही आप लंका पर भी विजय प्राप्त करेंगें। 

समय आने पर मुनि वकदालभ्य द्वारा बतायी गई विधिनुसार भगवान श्री राम सहित पूरी सेना ने एकादशी का व्रत रखा और रामसेतु बनाकर समुद्र को पार कर रावण को परास्त किया।

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