विवाह पंचमी : ऐसे कराएं राम-सीता विवाह, दूर होंगी विवाह में आने वाली बाधाएं

विवाह पंचमी : ऐसे कराएं राम-सीता विवाह, दूर होंगी विवाह में आने वाली बाधाएं

Manmohan Prajapati
Update: 2018-12-10 11:00 GMT
विवाह पंचमी : ऐसे कराएं राम-सीता विवाह, दूर होंगी विवाह में आने वाली बाधाएं

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगहन मास (मार्गशीर्ष) में शुक्ल पंचमी को भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह किया था। अतः इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे विवाह पंचमी भी कहा जाता है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम चेतना के प्रतीक हैं और माता सीता शक्ति की प्रतीक हैं। अतः चेतना और प्रकृति का मिलन होने से यह दिन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह करवाना बहुत शुभ माना जाता है। इस बार विवाह पंचमी 12 दिसंबर 2018 को मनाई जाएगी। विवाह पंचमी के दिन किस-किस तरह के वरदान मिल सकते हैं और इस दिन का क्या महत्व है? आइए जानते हैं...

किसी के विवाह होने में बाधा आ रही हो तो वह बाधा दूर हो जाती है।
मनचाहे विवाह का वरदान भी मिलता है।
वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का अंत हो जाता है।

विवाह पंचमी के दिन भगवान श्रीराम और माता सीता की संयुक्त रूप से उपासना करने से विवाह होने में आ रही बाधाएं नष्ट हो जाती हैं।
विवाह पंचमी के दिन बालकाण्ड में भगवान श्रीराम और माता सीता जी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ होता है। इस दिन सम्पूर्ण रामचरितमानस का पाठ करने से भी पारिवारिक जीवन सुखमय होता है।

कैसे करें भगवान राम और माता सीता का विवाह ?

प्रातः काल स्नान करके श्री राम विवाह का संकल्प लें।
स्नान करके विवाह के कार्यक्रम का आरंभ करें।
इस दिन भगवान श्रीराम और माता सीता के चित्र या प्रतिमा की स्थापना करें।
भगवान श्रीराम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें।
इनके समक्ष बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें।
"ॐ जानकीवल्लभाय नमः" मन्त्र का जाप करें।
इसके बाद माता सीता और भगवान श्रीराम का गठबंधन करें।
फिर उनकी आरती करें इसके बाद गांठ लगे वस्त्रों को अपने पास सुरक्षित रख लें।
श्रीराम विवाह के दिन इन मंत्रों का जाप करने से विवाह शीघ्र होगा।
श्रीराम के इस विवाह दिवस पर पीले वस्त्र धारण करें।

तुलसी या चन्दन की माला से मंत्र या दोहों का यथाशक्ति जाप करें।
जप करने के बाद शीघ्र विवाह या वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करें।
इनमें से किसी भी एक दोहे का जाप करना लाभकारी होगा।

प्रमुदित मुनिन्ह भावंरीं फेरीं। नेगसहित सब रीति निवेरीं॥
राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं॥1

पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हियं हरषे तब सकल सुरेसा॥
बेदमन्त्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥2

सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥3

श्रीरामचरितमानस के अनुसार इस तिथि को भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था। 
जिसका वर्णन श्रीरामचरितमानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने बड़ी ही सुंदरता से किया है।

श्रीरामचरितमानस के अनुसार- महाराजा जनक ने सीता के विवाह हेतु स्वयंवर रचाया। सीता के स्वयंवर में आए सभी राजा-महाराजा जब भगवान शिव का धनुष नहीं उठा सके, तब ऋषि विश्वामित्र ने प्रभु श्रीराम से आज्ञा देते हुए कहा- हे राम! उठो, शिवजी का धनुष तोड़ो और जनक का संताप मिटाओ। गुरु विश्वामित्र के वचन सुनकर श्रीराम तत्पर उठे और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए आगे बढ़ें। यह दृश्य देखकर सीता के मन में उल्लास छा गया। श्रीराम की ओर देखकर सीताजी ने मन ही मन निश्चय किया कि आज से में इन्हीं की होकर रहूंगी या तो इस धरा पर ही नहीं रहूंगी। 

सीता जी के मन की बात प्रभु श्रीराम समझ गए और उन्होंने देखते ही देखते महादेव शिव का वह अदभुत धनुष उठाया। और प्रत्यंचा चढ़ाते ही एक भयंकर ध्वनि के साथ धनुष टूट गया। तब सीता के मन को संतोष हुआ। तब सीताजी श्रीराम के निकट आईं। सखियों के बीच में जनकपुत्री सीता ऐसी शोभित हो रही थीं, जैसे बहुत-सी छबियों के बीच में महाछबि हो। तब एक सखी ने सीताजी से वरमाला पहनाने को कहा। उस समय उनके हाथ ऐसे सुशोभित हो रहे थे, मानो डंडियों सहित दो कमल चंद्रमा को भयभीत होते हुए वरमाला दे रहे हो। तब सीताजी ने श्रीराम के गले में वरमाला पहना दी। यह दृश्य देखकर देवतागण पुष्प बरसाने लगे। अवध नगर और आकाश में बाजे बजने लगे। 

श्रीराम सीता की जोड़ी इस प्रकार सुशोभित हो रही थी, मानो सुंदरता और श्रृंगार रस एकत्र हो गए हों। पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग में यश फैल गया कि श्रीराम ने धनुष तोड़ दिया और सीताजी का वरण कर लिया। इसी के कारण से प्रतिवर्ष अगहन मास की शुक्ल पंचमी को प्रमुख राम मंदिरों में विशेष उत्सव मनाया जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सीताजी के शुभ विवाह के कारण ही यह दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। भारतीय संस्कृति में राम-सीता आदर्श दम्पत्ति माने गए हैं। जिस प्रकार प्रभु श्रीराम ने सदा मर्यादा पालन करके पुरुषोत्तम का पद प्राप्त किया, उसी प्रकार माता सीता ने सारे जगत को पतिव्रता स्त्री होने का सर्वोपरि उदाहरण प्रस्तुत किया। इस पावन दिन पर सभी को श्रीराम सीताजी की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। 

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