कब और कैसे होता है अधिक मास, जानिए इसपर विशेष जानकारी

कब और कैसे होता है अधिक मास, जानिए इसपर विशेष जानकारी

Bhaskar Hindi
Update: 2018-04-29 03:44 GMT
कब और कैसे होता है अधिक मास, जानिए इसपर विशेष जानकारी


डिजिटल डेस्क ।  विरोधकृत नामक नवसंवत्सर 2075 प्रारंभ हो चुका है। इस नवीन संवत्सर में "अधिक मास" रहेगा। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है जब हिन्दी कैलेण्डर में पंचांग की गणनानुसार 1 मास अधिक होता है तब उसे "अधिक मास" कहा जाता है। हिन्दू शास्त्रों में "अधिक मास" को बड़ा ही पवित्र माना गया है, इसलिए "अधिक मास" को "पुरुषोत्तम मास" भी कहा जाता है। "पुरुषोत्तम मास" अर्थात् भगवान पुरुषोत्तम का मास। शास्त्रों के अनुसार "अधिकमास" में व्रत पारायण करना, पवित्र नदियों में स्नान करना एवं तीर्थ स्थानों की यात्रा का बहुत पुण्यप्रद होती है। 
 

 

 

आइए जानते हैं कि "अधिक मास" कब और कैसे होता है?
 
पंचांग गणना के अनुसार एक सौर वर्ष में 365 दिन, 15 घटी, 31 पल व 30 विपल होते हैं जबकि चन्द्र वर्ष में 354 दिन, 22 घटी, 1 पल व 23 विपल होते हैं। सूर्य व चन्द्र दोनों वर्षों में 10 दिन, 53 घटी, 30 पल एवं 7 विपल का अंतर प्रत्येक वर्ष में रहता है। इसी अंतर को समायोजित करने हेतु "अधिक मास" की व्यवस्था होती है। 
 
"अधिक मास" प्रत्येक तीसरे साल में होता है। जिस साल "अधिक मास" होता है उस साल में 12 के स्थान पर 13 महीने होते हैं। "अधिक मास" के माह का निर्णय सूर्य संक्रान्ति के आधार पर किया जाता है। जिस माह सूर्य संक्रान्ति नहीं होती वह मास "अधिक मास" कहलाता है।
 
साल 2018 में "अधिक मास" 16 मई से 13 जून के मध्य रहेगा। इस साल  ज्येष्ठ मास की अधिकता रहेगी अर्थात् इस साल दो ज्येष्ठ मास होंगे। "अधिक मास" की मान्यता 16 मई से 13 जून होगी।
 

 


पुरुषोत्तम मास में क्या करें

 

पुरुषोत्तम मास को मलमास या अधिक मास भी कहा जाता है। जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह मलमास कहलाता है। इन दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित रहता है। परंतु इस दौरान किए गए धर्म-कर्म से जुड़े सभी कार्य विशेष फलदायी रहते हैं। मलमास में केवल ईश्वर के लिए व्रत, दान, हवन, पूजा, ध्यान आदि करने का विधान है। ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है। आज हम आपको बता रहे हैं कि इस दौरान आपको क्या करना चाहिए।

मलमास में आपको ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ मंत्र या गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का नियमित जप करना चाहिए। इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण और एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। इस दौरान श्रीकृष्ण, श्रीमद् भागवत गीता, श्रीराम कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह में उपासना करने का अलग ही महत्व है।

 

 

कथा सुने और पढ़ें 

पुरुषोत्तम मास में कथा पढ़ने और सुनने दोनों का ही अद्भुत महत्व है। इस मास में उपासक को चाहिए कि वो जमीन पर शयन करें। उस दौरान एक ही समय भोजन करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है। यदि संभव हो तो कथा पढ़ने के समय ज्यादा से ज्यादा लोग आपकी कथा को सुनें।

 

दान करें

पुराणों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सभी पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह में आपके द्वारा गरीब को दिया एक रुपया भी सौ गुना फल देता है।

 

 

दीपदान

मलमास में दीपदान, वस्त्र और श्रीमद् भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव के साथ ही आपको पुण्य लाभ भी प्राप्त होता है।

 

 

विष्णु उपासना

पुरुषोत्तम मास में भगवान विष्णु के पूजन के साथ कथा श्रवण का विशेष महत्व है। इस दौरान शुभ फल प्राप्त करने के लिए मनुष्य को पुरषोत्तम मास में अपना आचरण पवित्र और सौम्य रखना चाहिए। इस दौरान मनुष्य को अपने व्यवहार में भी नरमी रखनी चाहिए।

 

 

सोना दान करने से आती है खुशहाली

मलमास के दौरान प्रतिपदा को चांदी के पात्र में घी रखकर किसी मंदिर के पुजारी को दान कर दें। इससे परिवार में शांति बनी रहती है।द्वितीया को कांसे के बर्तन में सोना दान करने से खुशहाली आती है। तृतीया को चना या चने की दाल का दान करने से व्यापार में मदद मिलती है।  चतुर्थी को खारक का दान लाभदायी होता है। पंचमी को गुण और तुवर की दाल का दान करने से रिश्तों में मिठास बनी रहती है।

 

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